करार
गिरे हैं पहाड़ो से संभल जायेंगे तो करार आयेगा।
खाके चोट पत्थरों की संवर जायेंगे तो करार आयेगा।
नीले पहाडो से उतर ये जल धारे गिरते हैं चट्टानों पर
झरने बन बह निकले कल-कल तो करार आयेगा।
कहीं घोर शोर ऊंचे नीचे, फूहार मोती सी नशीली
विकल बेचैन ,मिलेगें सागर से तो करार आयेगा।
जिससे मिलने की लिये गुजारिश चले अलबेले
पास मीत के पहुंच दामन में समा जायेंगे तो करार आयेगा।
सफर पर निकले दीवाने मस्ताने गुजर ही जायेंगे
लगाया जो दाव वो जीत जायेंगे तो करार आयेगा।
इठलाके चले बन नदी फिर बने आब ए- दरिया
जा मिलेगें ये जल धारे समंदर से तो करार आयेगा।
कुसुम कोठरी।
गिरे हैं पहाड़ो से संभल जायेंगे तो करार आयेगा।
खाके चोट पत्थरों की संवर जायेंगे तो करार आयेगा।
नीले पहाडो से उतर ये जल धारे गिरते हैं चट्टानों पर
झरने बन बह निकले कल-कल तो करार आयेगा।
कहीं घोर शोर ऊंचे नीचे, फूहार मोती सी नशीली
विकल बेचैन ,मिलेगें सागर से तो करार आयेगा।
जिससे मिलने की लिये गुजारिश चले अलबेले
पास मीत के पहुंच दामन में समा जायेंगे तो करार आयेगा।
सफर पर निकले दीवाने मस्ताने गुजर ही जायेंगे
लगाया जो दाव वो जीत जायेंगे तो करार आयेगा।
इठलाके चले बन नदी फिर बने आब ए- दरिया
जा मिलेगें ये जल धारे समंदर से तो करार आयेगा।
कुसुम कोठरी।
जिससे मिलने की लिये गुजारिश चले अलबेले
ReplyDeleteपास मीत के पहुंच दामन में समा जायेंगे तो करार आयेगा। बेहतरीन प्रस्तुति सखी👌👌👌🌹
इठलाके चले बन नदी फिर बने आब ए- दरिया
ReplyDeleteजा मिलेगें ये जल धारे समंदर से तो करार आयेगा।
बहुत खूब..... लाजबाब.... कुसुम जी
वाह
ReplyDeleteवाह ! बहुत ख़ूब सखी
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन...., लाजवाब ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति,कुसुम दी।
ReplyDeleteइठलाके चले बन नदी फिर बने आब ए- दरिया
ReplyDeleteजा मिलेगें ये जल धारे समंदर से तो करार आयेगा।
बहु खूब कुसुम बहन !!!!! ये करार बहुत ही मनभावन है | आभार और प्यार |