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Thursday 6 September 2018

तुम मुझे भूल जाओ शायद

क्या भूल पाओगी

तुम मूझे भूल जाओ शायद पर साथ
गुजारे वो  लम्हे  क्या भूल  पाओगी
वो निरव तट पे साथ मेरा और मचलती
लहरों का कलछल क्या भूल पाओगी।

वो हवाओं का तेरे आंचल को छेड़ना
और मेरा अंगुलियों पर आंचल रोकना
वो नटखट घटाओं का तेरे चंद्र मुख पर
छा जाना और मेरा फिर उन्हें मोड़  देना
क्या भूल पाओगी....

मेरी कागज पर लिखी निर्जीव  गजल
गुनगुना के सजीव करना जब अपना
नाम आता तो दांतों मे अंगुली दबाना
 उई मां कह रतनार हो आंख झुकाना
क्या भुला पाओगी.....

वो शर्म की लाली जो अपना ही रूप देख
साथ मेरे आईने मे आती मुख पर तुम्हारे,
वो गिरते आंसुओं को रोकना हथेली पे मेरी
और तुम्हारा उन्ही हथेलियों मे मुख छुपाना
क्या भूल पाओगी...

तुम मुझे भूल जाओ शायद पर साथ
गुजारे  वो  लम्हे  क्या भूल  पाओगी ।
               कुसुम कोठारी ।

9 comments:

  1. आहा...
    भावुक अहसास से रंगी खूबसूरत रचना

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  2. वाह!!! बहुत खूब सखी .... बहुत सुन्दर रचना

    बीते हुए लम्हें भुलाना नही आसान
    तब तक रहें ये साथ जब तक है बाकी जान

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  3. वाह्ह... वाह्हह...बेहतरीन बेहद खूबसूरत एहसास मैं बुनी शानदार रचना दी...👌👌👌👌👌

    काश!कि मैं तुम्हें भूल पाती
    कुछ पल के लिए भूल पाती
    ज़िंदगी आसान हो जाती गर
    विस्मृतियों हिंडोले में झूल पाती

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  4. लाजवाब मीता ..
    क्या तुम मुझे भूल पाओगी ....प्रश्न लिखा और संग मैं उत्तर भी लिख डाला है वो भाव भंगिमा और हलचल जिस जिसमें हमको बांधा है !

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  5. बेहद भावपूर्ण रचना कुसुम जी

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  6. वाह! प्रणय के मख़मली संजीदा एहसासात से भरी दिल को गुदगुदाती रचना. स्मृतयों के ख़ज़ाने में जमा होते हैं कुछ ऐसे ही ख़ूबसूरत पल जो ज़िन्दगीभर ख़ुशबू बिखेरते रहते हैं.
    उत्कृष्ट रचना. बधाई एवं शुभकामनायें.

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  7. बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना...
    रचना पढ़कर वो शेर याद आता है.
    "जब जब तुझे भुलाने की कसम खाई है,
    औऱ पहले से भी ज्यादा तेरी याद आई है.."

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  8. साथ मेरे आईने मे आती मुख पर तुम्हारे,
    वो गिरते आंसुओं को रोकना हथेली पे मेरी
    और तुम्हारा उन्ही हथेलियों मे मुख छुपाना
    क्या भूल पाओगी...???
    प्रिय कुसुम बहन -- इस तरह के सवाल और जवाब में कुछ नहीं !!!! क्या खूब झांका आपने किसी के मन में -? कोई बेबस इस तरह के सवालात के जवाब दे भी तो क्या ?बहुत मनभावन और हृदयस्पर्शी रचना | सस्नेह --

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  9. यादों के कौन कौन से गलियारे नहीं खोल दिए आपने ...
    बहुत ही संवेदित कर गयी ... अंतस को भिगो गयी ये रचना ...

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