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Friday 21 September 2018

क्षणिकाएं, मन, अहंकार, क्रोध

तीन क्षणिकाएं

मन
मन क्या है एक द्वंद का भंवर है
मंथन अनंत बार एक से विचार है
भंवर उसी पानी को अथक घुमाता है
मन उन्हीं विचारों को अनवरत मथता है।

अंहकार
अंहकार क्या है एक मादक नशा है
बार बार सेवन को उकसाता रहता है
 मादकता बार बार सर चढ बोलती है
अंहकार सर पे ताल ठोकता रहता है।

क्रोध
क्रोध क्या है एक सुलगती अगन है
आग विनाश का प्रतिरूप जब धरती है
जलाती आसपास और स्व का अस्तित्व है
क्रोध अपने से जुड़े सभी का दहन करता है।

                       कुसुम कोठारी।

17 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन क्षणिकाएं कुसुम जी

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    1. ढेर सा आभार सखी आपका स्नेह अतुल्य है।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 सितम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी बहुत सा आभार. मै अवश्य आने में प्रयास रत रहूंगी।

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  3. क्या कहने सखी ....शानदार भाव मन को छू गये ...लाजवाब लेखन

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती सी ।

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  4. अरे वाहहह दी...एक से बढ़कर एक सुंदर क्षणिकायें हैं...। गहन अर्थ समेटे हुये बेहद लाज़वाब...👌👌

    क्रोध
    क्रोध क्या है एक सुलगती अगन है
    आग विनाश का प्रतिरूप जब धरती है
    जलाती आसपास और स्व का अस्तित्व है
    क्रोध अपने से जुड़े सभी का दहन करता है।

    ये तो बेमिसाल है दी..।

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    1. सस्नेह आभार श्वेता, आपकी सराहना से मेरी रचना को आयाम मिले।
      सदा स्नेह क साथ।

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  5. बेहतरीन क्षणिकाएं 👌

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    1. जी तहेदिल से शुक्रिया अनिता जी
      स्नेह बनाये रखें।

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  6. लाजवाब क्षणिकाएं...
    वाह!!!

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    1. सस्नेह आभार सुधा जी ।

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  7. भंवर उसी पानी को अथक घुमाता है
    मन उन्हीं विचारों को अनवरत मथता है।

    बिल्कुल ज्ञान गंगा है

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  8. मन का द्वन्द कई बार अहंकार जगाता है जो क्रोध बढ़ा देता है ...
    तीनों जबरदस्त ...

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  9. वाह आपने तीनों क्षणिकाओं के अंतर निहित भावों में जो सम्बन्ध है जो एक दुसरे की पूरक अवस्थाऐं हैं उन्हें कितने कम शब्दों में साफ साफ चित्रित किया सच, बेमिसाल।
    सादर आभार इस अप्रतिम व्याख्या और सराहना के लिए।

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