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Wednesday 19 September 2018

ऐ दिल

ऐ दिल क्यों लौट के, फिर वहीं आता है।

क्या खोया इन राहों मे,
जो ढूंढ नही पाता है,
सूना मन का कोई कोना
खुद भी देख नही पाता है।

ऐ दिल क्यों लौट के....

हर लम्हे की कोई,
पहचान नही होती
फिर भी गुजरा लम्हा
बीत नही पाता है ।

ऐ दिल क्यों लौट के....

कौन सा अनुराग है ये
या कोइ मृगतृष्ना
भटके मन को कैसे
उन राहों से लाऊं ।

ऐ दिल क्यों लौट के....

     कुसुम कोठारी ।

14 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना कुसुम जी

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    1. जी अनुराधा जी आपकी त्वरित प्रतिक्रिया सदा मन को मोह लेती है।

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  2. कौन सा अनुराग है ये
    या कोइ मृगतृष्ना
    भटके मन को कैसे
    उन राहों से लाऊं ।


    बहुत बहुत सुंदर कुसुम जी।
    इस तृष्णा से कैसे उबर पाए यही तो सबके हृदय का प्रश्न हैं।लाज़वाब रचना

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    1. जी बहुत सा आभार आदरणीय आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।

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  3. मन है ये ... बीते में ही रहना चाहता है ... उसकी यादों में जीना चाहता है ... वहीं लौट के आता है ... अतीत में जीती सुन्दर रचना ...

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    1. जी सादर आभार दिगम्बर जी आपकी प्रतिक्रिया से सदा उत्साह वर्धन होता है ।

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  4. आफरीन मीता ...
    मन की अनकही व्यथा
    सगरी ही कह डाली
    पुनि पुनि वही बैठना चाहे
    बैठा था जिस डाली !

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    1. बहुत सा आभार मीता, सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया मन को और उत्साहित करती है सदा

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना

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    1. जी सादर आभार प्रशांत जी

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  6. सुन्दर.... शानदार रचना 👌👌👌

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  7. अद्भुत रचना।
    क्या रचतीं हैं आप। 👌

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    1. जी अनुग्रहित हुई मैं सादर आभार।

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