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Thursday, 2 May 2019

फुरसत ए जिंदगी


फुरसत -ए ज़िंदगी कभी तो हो रू-ब-रू
ढल चला आंचल अब्र का भी हो  सुर्ख़रू ।

पहरे बिठाये थे आसमाँ पर आफ़ताब के
वो ले  गया इश्राक़ आलम हुवा बे-आबरू ।

चलो चाँद पर कुछ क़समे उठा देखा जाए
चमकता रहा माहताबे अल शब-ए आबरू।

इश्राक़=चमक
अल =कला

               कुसुम कोठारी।

14 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-05-2019) को "सुनो बटोही " (चर्चा अंक-3325) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    ....
    अनीता सैनी

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    1. बहुत सा आभार चर्चा मंच पर मेरी रचना को शामिल करने के लिए।
      सस्नेह।

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  2. "चलो चाँद पर कुछ क़समे उठा देखा जाए
    चमकता रहा माहताबे अल शब-ए आबरू"
    वाह !!! बहुत खूब ...., अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति कुसुम जी ।

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    1. आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली मीना जी।
      आपका स्नेह सदा मेरे लिए मुल्यवान है।
      सस्नेह।

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  3. वाहह्हह दी .बहुत शानदार.. लाज़वाब हर अश'आर नायाब है...आपकी लेखनी का हर रुप बस कमाल है।

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    1. आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया और सराहना से मन को अथाह सुख मिला ।
      सस्नेह श्वेता।

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  4. Replies
    1. सादर आभार आपका प्रोत्साहन के लिए।

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  5. बहुत सुंदर पंक्तियां 👌👌👌

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    1. सस्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है ।

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  6. पहरे बिठाये थे आसमाँ पर आफ़ताब के
    वो ले गया इश्राक़ आलम हुवा बे-आबरू ।
    बहुत खूब प्रिय कुसुम बहन !!!!! भावपूर्ण अशार !!!!

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ९ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  8. जी बहुत सुंदर प्रस्तुति ।बहुत ही सार्थक सृजन।

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  9. पहरे बिठाये थे आसमाँ पर आफ़ताब के
    वो ले गया इश्राक़ आलम हुवा बे-आबरू ।
    वाह!!!!
    बहुत ही लाजवाब अश'आर...

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