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Saturday 18 May 2019

धूप जा बैठी छाया में

धूप जा बैठी छाया में

धूप शाम ढले आखिर
थक ही गई
सारा दिन कितनी
तमतमाई सी गुस्साई
अपनी गर्मी से शीतलता का
दोहन करती
विजेता सी गर्व में
गर्म फुत्कार छोड़ती
जैसे सब भष्म कर देगी
अपनी अगन से
ताल तलैया सब पी गई
अगस्त्य ऋषि जैसे
हर प्राणी को अपने तीव्र
प्रचंड ताप से त्रस्त करती
हवा को गर्म खुरदरे वस्त्र पहना
अपने साथ ले चलती
त्राहिमाम मचाती
दानवी प्रवृति से सब को सताती
आज सब जला देगी
जड़ चेतन प्राण औ धरती
सूर्य का खूंटा पकड़ बिफरी
दग्ध दावानल मचाके
आखिर थक गई शाम ढले
छुप बैठी जाके छाया में।

          कुसुम कोठारी।

11 comments:

  1. ताल तलैया सब पी गई
    अगस्त्य ऋषि जैसे...., वाह ! बहुत खूब👌👌

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।

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  2. त्राहिमाम मचाती
    दानवी प्रवृति से सब को सताती.. वाह!! बहुत सुंदर रचना सखी

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    1. सच सखी ऐसा ही त्राहिमाम मचा रखा है धूप ने। ढेर सा आभार
      सस्नेह।

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  3. धूप शाम ढले आखिर
    थक ही गई
    सारा दिन कितनी
    तमतमाई सी गुस्साई
    बहुत खूब , छाँव तलाशती धुप ,लाजबाब सृजन सादर नमस्कार कुसुम जी

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    1. हां कामिनी जी अपनी तपन से झुलस आखिर खुद भी छांव में जा बैठती है धूप।
      स्नेह आभार आपका प्रोत्साहन करती प्रतिक्रिया

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  4. बेहतरीन रचना प्रिय सखी
    सादर

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    1. ढेर सा स्नेह प्रिय बहन।
      रचना सार्थक हुई ।

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  5. धूप जा बैठी छाया में ... वाह अनुपम सृजन

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
      सदा स्नेह बनाये रखें।
      सस्नेह।

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  6. आखिर धूप भी क्लांत हो जाती होगी शाम होते होते | उसका मन भी तो करता होगा छाया में बैठने का | सुंदर कल्पना और सम सामयिक विषय [ भयंकर गर्मी ] पर सार्थक रचना प्रिय कुसुम बहन |

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