धूप जा बैठी छाया में
धूप शाम ढले आखिर
थक ही गई
सारा दिन कितनी
तमतमाई सी गुस्साई
अपनी गर्मी से शीतलता का
दोहन करती
विजेता सी गर्व में
गर्म फुत्कार छोड़ती
जैसे सब भष्म कर देगी
अपनी अगन से
ताल तलैया सब पी गई
अगस्त्य ऋषि जैसे
हर प्राणी को अपने तीव्र
प्रचंड ताप से त्रस्त करती
हवा को गर्म खुरदरे वस्त्र पहना
अपने साथ ले चलती
त्राहिमाम मचाती
दानवी प्रवृति से सब को सताती
आज सब जला देगी
जड़ चेतन प्राण औ धरती
सूर्य का खूंटा पकड़ बिफरी
दग्ध दावानल मचाके
आखिर थक गई शाम ढले
छुप बैठी जाके छाया में।
कुसुम कोठारी।
धूप शाम ढले आखिर
थक ही गई
सारा दिन कितनी
तमतमाई सी गुस्साई
अपनी गर्मी से शीतलता का
दोहन करती
विजेता सी गर्व में
गर्म फुत्कार छोड़ती
जैसे सब भष्म कर देगी
अपनी अगन से
ताल तलैया सब पी गई
अगस्त्य ऋषि जैसे
हर प्राणी को अपने तीव्र
प्रचंड ताप से त्रस्त करती
हवा को गर्म खुरदरे वस्त्र पहना
अपने साथ ले चलती
त्राहिमाम मचाती
दानवी प्रवृति से सब को सताती
आज सब जला देगी
जड़ चेतन प्राण औ धरती
सूर्य का खूंटा पकड़ बिफरी
दग्ध दावानल मचाके
आखिर थक गई शाम ढले
छुप बैठी जाके छाया में।
कुसुम कोठारी।
ताल तलैया सब पी गई
ReplyDeleteअगस्त्य ऋषि जैसे...., वाह ! बहुत खूब👌👌
बहुत बहुत आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
Deleteत्राहिमाम मचाती
ReplyDeleteदानवी प्रवृति से सब को सताती.. वाह!! बहुत सुंदर रचना सखी
सच सखी ऐसा ही त्राहिमाम मचा रखा है धूप ने। ढेर सा आभार
Deleteसस्नेह।
धूप शाम ढले आखिर
ReplyDeleteथक ही गई
सारा दिन कितनी
तमतमाई सी गुस्साई
बहुत खूब , छाँव तलाशती धुप ,लाजबाब सृजन सादर नमस्कार कुसुम जी
हां कामिनी जी अपनी तपन से झुलस आखिर खुद भी छांव में जा बैठती है धूप।
Deleteस्नेह आभार आपका प्रोत्साहन करती प्रतिक्रिया
बेहतरीन रचना प्रिय सखी
ReplyDeleteसादर
ढेर सा स्नेह प्रिय बहन।
Deleteरचना सार्थक हुई ।
धूप जा बैठी छाया में ... वाह अनुपम सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteसदा स्नेह बनाये रखें।
सस्नेह।
आखिर धूप भी क्लांत हो जाती होगी शाम होते होते | उसका मन भी तो करता होगा छाया में बैठने का | सुंदर कल्पना और सम सामयिक विषय [ भयंकर गर्मी ] पर सार्थक रचना प्रिय कुसुम बहन |
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