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Wednesday 1 May 2019

श्रमिक दिवस पर एक चिंतन

एक चिंतन

कवि काव्य, साहित्यकार साहित्य और भी लेखन कला में हम श्रमिक और गरीब को भर-भर लिखते हैं पर एक मजदूर को उससे कितना सरोकार है ? सोचें !!

मजदूर नाम से ही एक कर्मठ पर बेबस लाचार सा व्यक्तित्व सामने आ खड़ा होता है जिसकी सारी जिंदगी बस अपना और परिवार का पेट भर जाय इतनी जुगाड़ में निकल जाता है ।सारा परिवार बच्चों सहित लगा रहता है मजदूरी में पर वो भी सदैव मयस्सर नहीं होती। आधे दिन  फाके की नौबत रहती है, बिमारी में उधारी और पास का सब कुछ बिक जाता है फिर भी सब कुछ सापेक्ष नही होता।
बस एक मजदूर के नाम पर एक साधन हीन चेहरा उभर कर आता है जिसे हम गरीब कहते हैं।

और उसी गरीब  पर *राष्ट्रपिता* के कुछ उद्दगार हृदय-स्पर्शी मर्म को भेदते ....

"गरीबों का काव्य ,समाज ,और रचनात्मकता कितनी?"

"भारत के विस्तृत आकाश के नीचे मानव -पक्षी रात को सोने का ढ़ोंग करता है, भुखे पेट उसे जरा भी नींद नही आती और जब वह सुबह बिस्तर से उठता है तब उसकी शक्ति पिछली रात से कम हो जाती है।

लाखों मानव-पक्षियों को रात भर भूख प्यास  से पीड़ित रहकर जागरण करना पड़ता है अथवा जाग्रत सपनों में उलझे रहना पड़ता है ।
यह अपने अपने अनुभव की, अपनी समझ की, अपनी आँखों देखी  अकथ दुखपूर्ण अवस्था और कहानी है।
कबीर के गीतों से इस पीड़ित मानवता को सान्त्वना दे सकना असम्भव है ।
यह लक्षावधि भूखी मानवता हाथ फैलाकर, जीवन के पंख फड़फड़ाकर कराहकर केवल एक कविता माँगती है _पौष्टिक भोजन ।"

श्री विष्णुप्रभाकर जी के एक उपन्यास
" तट के बंधन " से लिया ये एक पत्र है जो महात्मा गांधी ने रविन्द्र नाथ टैगोर को लिखा था ।

एक संकलन......

15 comments:

  1. हृदयस्पर्शी ....।।

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    1. स्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है ।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सब को मजदूर दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएँ !!

    ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 01/05/2019 की बुलेटिन, " १ मई - मजदूर दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. सादर आभार शिवम जी ये मेरा मन से जुडा संकलन है मेरे द्वारा दी गई भुमिका के साथ इसे आपने ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया मैं हृदय तल से अनुग्रहित हूं।
      सादर।

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  3. ह्रदयस्पर्शी... |
    सादर

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    1. स्नेह आभार प्रिय बहना ।

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  4. बेहद हृदयस्पर्शी प्रस्तुति सखी

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  5. सबके करीब
    सबसे दूर
    मजदूर!
    मजदूरो की तो यही कहानी है

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    1. सादर आभार संजय जी ये एक यथार्थ है जो बहुत दुखद है।
      सादर।

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  6. मार्मिक भावाभिव्यक्ति !!!

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    1. बहुत बहुत आभार डाक्टर साहिबा मेरे ब्लॉग पर आपका तहेदिल से स्वागत है सदा स्नेह बनाये रखें।
      सस्नेह।

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  7. प्रिय कुसुम बहन -- सबसे पहले तो आपकी आभारी हूँ कि आप इतनी अनमोल थाती ढूढ़ के लायी हैं | महात्मा गाँधी का गुरुदेव को लिखा पत्र के अंश वो भी मजदूर के सम्बन्ध में |सच है हम श्रमिक के स्वाभिमान और कर्मठता के यशोगान रचते हैं पर वह नहीं जानता कि कोई उसके बारे में क्या लिख रहा है | उसे कर्म से मतलब है किसी किस्से कहानी या कविता से नहीं भले ही वह उसी के बारे में हो | पर कुसुम बहन ये लिखना चाहूंगी कि वे साधन संपन्न अकर्मण्य लोगों से बेहतर हैं | उन्हें काम चाहिए जिससे दाम मिले और घर चले | और कलमकार इनकी पीड़ा को सत्ता पक्ष तक पहुंचाता है वही उसका कर्तव्य और दायित्व है | वो भी इसलिए ताकि उसका जीवन संवरे | निष्काम भाव से लगे ये कर्म योद्धा धर्म , जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर उसी के प्रति निष्ठावान रहते हैं जो उन्हें काम पर लगाता है | आपके सार्थक लेख के लिए साधुवाद और आभार | प्रतिक्रिया देर से दे पाती हूँ हालाँकि पढने में आपके साथ साथ हूँ |

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  8. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 01 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  9. वाह!कुसुम जी ,आपका हृदय से आभार इतनी सुंदर प्रस्तुति के लिए ।

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