Followers

Saturday 23 March 2019

कैसो री अब वसंत सखी

कैसो री अब वसंत सखी ।

जब से श्याम भये परदेशी
नैन बसत सदा मयूर पंखी
कहां बस्यो वो नंद को प्यारो
उड़ जाये मन बन पाखी
कैसो री अब वसंत सखी।

सुमन भये सौरभ विहीन
रंग ना भावे सुर्ख चटकीले
खंजन नयन बदरी से सीले
चाँद लुटाये चांदनी रुखी
कैसो री अब वसंत सखी।

धीमी बयार जीया जलाये
फीकी चंद्र की सभी कलाएं
चातकी जैसे राह निहारूं
कनक वदन भयो अब लाखी
कैसो री अब वसंत सखी।

झूठो है जग को जंजाल
जल बिंदु सो पावे काल
स्नेह विरहा सब ही झूठ
आत्मानंद पा अंतर लखि
ऐसो हो अब वसंत सखी।

       कुसुम कोठारी ।

लाखी - लाख जैसा मटमैला
लखि-देखना ।

14 comments:

  1. बेहतरीन रचना ..., विरहानुभूति का हृदयस्पर्शी वर्णन। अत्यंत सुन्दर ....,

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार मीना जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
      सस्नेह।

      Delete
  2. Replies
    1. सादर आभार आदरणीय आपकी उपस्थिति सदा लेखन को प्रोत्साहित करती है।
      सादर।

      Delete
  3. बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुवा ।

      Delete
  4. झूठो है जग को जंजाल
    जल बिंदु सो पावे काल
    स्नेह विरहा सब ही झूठ
    आत्मानंद पा अंतर लखि
    ऐसो हो अब वसंत सखी
    बहुत ही सुंदर.....

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सा आभार कामिनी जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
      सस्नेह ।

      Delete
  5. जग झूठा, स्नेह प्रेम सब झूठा ...
    अंतर्मन का एहसास जब जागता है तो सब कुछ झूठ लगता है सिवाए परम सत्य के ...
    सुन्दर भाव लिए अनुपम रचना ...

    ReplyDelete
  6. सस्नेह आभार श्वेता ।

    ReplyDelete
  7. सटीक व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
    सादर आभार नासवा जी ।

    ReplyDelete
  8. झूठो है जग को जंजाल
    जल बिंदु सो पावे काल
    स्नेह विरहा सब ही झूठ
    आत्मानंद पा अंतर लखि
    ऐसो हो अब वसंत सखी।
    जब विरह बेदना असह्य हो गयी तब जग की नश्वरता का भान और जग के जंजाल का झूठापन महसूस कर नायिका आत्मानंद को अन्तर्मन में ढूँढने लगी...बहुत ही लाजवाब.... बहुत ही सराहनीय
    वाह!!!

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर दी जी 👌

    ReplyDelete