Followers

Friday 3 December 2021

नियति


 नियति सब कुछ तो निश्चित किए बैठी है और हम न जाने क्यों इतराते रहते हैं खुद की कल्पनाओं, समझदारी, योजनाओं,और साधनों पर।

क्या कभी कोई पत्ता भी हिलता है हमारे चाहने भर से।

समय दिखता नहीं पर निशब्द अट्टहास करता है हमारे पास खड़ा ,हम समय के भीतर से गुजरते रहते हैं अनेकों अहसास लिए और समय वहीं रूका रहता हैं निर्लिप्त निरंकार।

वक्त थमा सा खड़ा रहता है और हम उस राह गुजरते हैं जिसकी कोई वापसी ही नहीं।

पीछे छूटते पलों में कितने सुख कितने दुख सभी पीछे छूटते हैं बस उनकी एक छाया भर स्मृति में कहीं रहती है।

और हम निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं समय खड़ा रहता है ठगा सा !!

12 comments:

  1. बहुत गहरी बात कही दी परंतु मानव कब समझता है।
    बुद्धि के जोर पर स्वयं को ज्ञाता समझता रहता।
    सराहनीय सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा प्रिय अनिता आपने।
      कोई कितना भी ज्ञाता हो नियति के आगे अज्ञ है, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

      Delete
  2. मन को छूते संवेदना के मर्म । हमारी सोच को यथार्थ का आइना दिखाता आलेख ।बहुत बहुत शुभकामनाएं कुसुम जी ।आपको नमन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपको लेखन पसंद आया लेखन सार्थक हुआ।
      बस यूं ही मन में कुछ विचार उठे और लिख दिए बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
      सस्नेह।

      Delete
  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
      सादर।

      Delete
  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार
    (6-12-21) को
    तुमसे ही मेरा घर-घर है" (चर्चा अंक4270)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी,चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

      Delete
  5. एक कहानी का वाकया है कि गाड़ीवान ने धूप से बचाने के लिए अपने कुत्ते को उसके नीचे चलने दिया ! इस पर कुत्ते को लगा कि गाडी वही चला, संभाल रहा है...............!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह! बहुत सुंदर कथा, लेखन के समानांतर भावों से लेखन मुखरित हुआ ।
      बहुत बहुत आभार आपका गगन जी ।
      सादर।

      Delete
  6. नियति सब कुछ तो निश्चित किए बैठी है और हम न जाने क्यों इतराते रहते हैं खुद की कल्पनाओं, समझदारी, योजनाओं,और साधनों पर।
    सही कहा बिल्कुल वैसे ही जैसे ऊपर गगन शर्मा जी ने लिखा है....इसी गलतफहमी में उम्र गुजरती है...
    बहुत ही सार्थक मनन योग्य लाजवाब सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मन प्रफुल्लित हुआ सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया लेखन में नव प्राण फूंक देती है।
      हृदय से आभार आपका।
      सस्नेह।

      Delete