Followers

Wednesday 17 February 2021

जीवन यही है


 गीतिका


जीवन यही है


कुनकुनी सी धूप ने भी बात अब मन की कही है।

कुछ दिनों तक हूँ सुहानी फिर तपे मुझ से मही है।।


आज जो मन को सुहानी कल वही लगती अशोभन।

काल के हर एक पल में मान्यता  ढहती रही है ।।


एक सी कब रात ठहरी आज पूनम कल अँधेरी।

सुख कभी आघात दुख का मार ये सब ने सही है।।


एक ही मानव सदा से चेल कितने है बदलता।

दूध शीतल रूप धरता और कहलाता दही है।


चक्र जैसा घूमता ऊपर कभी नीचे कभी जो।

कह उठा हर एक ज्ञानी बूझ लो  जीवन यही है।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

33 comments:

  1. समय ! यह तो खुद के लिए भी नहीं ठहरता

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सही कहा आपने।
      सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

      Delete
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2043...अपने पड़ोसी से हमारी दूरी असहज लगती है... ) पर गुरुवार 18 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं मंच पर उपस्थित रहकर सभी रचनाकारों की रचनाओं का रस्वादन करने को ।
      सादर।

      Delete
  3. Replies
    1. ढेर सा स्नेह आभार सु-मन जी ।

      Delete
  4. बहुत ही बेहतरीन 👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. सखी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह आभार।

      Delete
  5. बहुत बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

      Delete
  6. बहुत सुन्दर और सारगर्भित गीतिका।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय उत्साह वर्धन के लिए।
      सादर।

      Delete
  7. बहुत ही बढ़िया है, नमन बधाई हो

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      प्रोत्साहित करती सुंदर प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

      Delete
  8. वाह!बहुत ही सुंदर..यही जीवन है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार प्रिय बहना।

      Delete
  9. सुन्दर प्रस्तुति.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

      Delete
  10. एक सी कब रात ठहरी आज पूनम कल अँधेरी।

    सुख कभी आघात दुख का मार ये सब ने सही है।।
    बहुत सुंदर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत सा आभार ज्योति बहन सुंदर प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

      Delete
  11. बहुत सुंदर भाव आदरणीया,
    बहुत सुंदर रचना

    आशा करती हूं कि कृपया अन्यथा नहीं लेंगी....एक विनम्र निवेदन है...
    'सुख कभी आघात दुख का मार ये सब ने सही है।।'
    के स्थान पर यदि
    'सुख कभी आघात दुख की पीर ये सब ने सही है।।'
    कर लें तो मेरे विचार से उचित होगा।
    .... क्योंकि यदि 'दुख का मार' लिखा जाएगा तो मार शब्द पुल्लिंग होने के कारण 'सबने सहा है' होगा, जो कि तुकांत से भिन्न हो जाएगा।
    पुनः निवेदन है कि अपनत्व की भावना से दिए गए मेरे इस सुझाव को कृपया अन्यथा हरगिज़ नहीं लीजिएगा।
    सादर,
    कृपाकांक्षिणी,
    डॉ. वर्षा सिंह

    ReplyDelete
    Replies
    1. वर्षा जी मैं सभी सुझाव सहर्ष स्वीकारती हूं उपयुक्त सलाह को खुशी से स्वीकार करती हूं इसमें कुछ भी अन्यथा लेने का प्रश्न ही नहीं है आप सदा मुझे अच्छी मित्र की तरह ।
      आपने सुझाव देते रहें। अपनी तरफ से सही कहा है आपने पर इसे ऐसे देखें👇
      सुख कभी, आघात दुख का, मार ये सब ने सही हैं।(दुख का मार शब्द नहीं है)(शब्द है आघात दुख का)
      चुंकि गितीका और नवगीत में अल्प विराम नहीं लगाते बस गाने के समय ही गायकी में ही हल्का सा ठहराव ले लेते हैं ,तो एक साथ पढ़ने पर पंक्ति ऐसे लगती है जो आपने बताया ।
      "सुख कभी आघात दुख का मार ये सब ने सही हैं।"
      मेरी दृष्टि से एक बार देख कर बताएं कि उचित क्या है वैसे मात्रा की गिनती के हिसाब से मैं मार की जगह पीर भी ले सकती हूं ज्यादा सुंदर लगेगा पर मेरी संरचना में आघात दुख *का* लेना सही लग रहा है *मार पीर* आसानी से बदल सकते हैं आप एक वार देख कर बताएं।
      सस्नेह।

      Delete
    2. जी, विराम नहीं होने से यह भ्रम हुआ.... निश्चय ही विराम के साथ सुधार की कतई गुंजाइश नहीं है। पूरा गीत मुकम्मल है। मुझे प्रसन्नता है कि आप सहज रूप से संवाद करती हैं... विचार विनिमय करती हैं... और शायद इसलिए मैं भी जो महसूस करती हूं वह स्पष्ट रूप से आपसे कह पाती हूं।
      आपकी सदाशयता की कायल हूं मैं... बहुत धन्यवाद आदरणीया 🙏
      शुभकामनाओं सहित,
      सादर
      डॉ. वर्षा सिंह

      Delete
  12. जीवन के अतल का अति सुन्दर गान । अंत:करण ने जिसे सुना । बधाई ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
      सस्नेह।

      Delete
  13. मीना जी मेरी रचना को सम्मान देने के लिए हृदय तल से आभार।
    मैं मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी, सुंदर संकलन पढ़ने को ।
    सादर सस्नेह।

    ReplyDelete
  14. बहुत सुन्दर व अलहदा सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना प्रवाहमान हुईं।
      सादर।

      Delete
  15. चक्र जैसा घूमता ऊपर कभी नीचे कभी जो।
    कह उठा हर एक ज्ञानी बूझ लो जीवन यही है।।

    सुंदर दार्शनिक पंक्तियां...🌹🙏🌹

    ReplyDelete
  16. "एक सी कब रात ठहरी आज पूनम कल अँधेरी।

    सुख कभी आघात दुख का मार ये सब ने सही है।।"

    यथार्थ का दर्शन करती बेहद सुंदर गीतिका,सादर नमन कुसुम जी

    ReplyDelete
  17. बहुत बहुत सुन्दर रचना !

    ReplyDelete
  18. कुसुम जी, आपकी काव्य रचनाएं उत्कृष्ट साहित्य की श्रेणी में आती हैं । इनके पारायण का अनुभव ही किसी साहित्य-प्रेमी
    भिन्न हेतु प्रकृति का होता है । प्रस्तुत रचना भी ऐसी ही है ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. कृपया'किसी साहित्य-प्रेमी हेतु भिन्न प्रकृति का' पढ़ें ।

      Delete