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Thursday 25 February 2021

लेखनी के रूप


 विधाता छंद 1222-----


लेखनी के रूप


कलम लिखती मसी बहती,नयी रचना मुखर होती।

लिखे कविता सरस सुंदर, नवल रस के धवल मोती।

चटकते फूल उपवन में ,दरकती है धरा सूखी।

कभी अनुराग झरता है, कभी ये ओज से भरती।।


हवा से तेज ये दौड़े, सदावट के खटोले पर।

दवा का घूंट भी ये है, सुधा का है सरस ये वर।

समेटे विश्व की पीड़ा, बहादे प्रेम की गंगा।

गुणों की खान होती है, चले जब लेखनी सर सर ।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

40 comments:

  1. समेटे विश्व की पीड़ा, बहादे प्रेम की गंगा।
    गुणों की खान होती है, चले जब लेखनी सर सर ।।

    सत्य लिखा दी,अत्यंत सुंदर भाव समेटे सारयुक्त सृजन दी।
    सादर
    सस्नेह प्रणाम।

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    1. ढेर सा स्नेह बहना आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 26 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी सादर!
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी ।

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  3. बहुत सुन्दर और सारगर्भित मुक्तक।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  4. हवा से तेज ये दौड़े, सदावट के खटोले पर।

    दवा का घूंट भी ये है, सुधा का है सरस ये वर।

    समेटे विश्व की पीड़ा, बहादे प्रेम की गंगा।

    गुणों की खान होती है, चले जब लेखनी सर सर ।।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
      सक्रिय सुंदर अल्फाज़ आपके प्रसन्नता हुई ।
      सस्नेह।

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  5. Replies
    1. जी रचना के भावों को समर्थन मिला।
      बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  6. बहुत खूबसूरत रचना

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  7. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय

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    1. आलोक जी बहुत बहुत आभार आपका हृदय तल से।
      सादर।

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  8. सुन्दर रचना

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    1. हृदय तल से आभार आपका ।
      सादर।

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  9. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२७-०२-२०२१) को 'नर हो न निराश करो मन को' (चर्चा अंक- ३९९०) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका चर्चा में स्थान देने के लिए।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर,सस्नेह।

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  10. वाह
    बहुत सुंदर

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    1. सादर आभार आपका सर। उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  11. बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने, हर बात को सुंदर ढंग से रक्खा गया है,सादर नमन, बधाई हो आपको

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    1. समर्थन देती सुंदर प्रतिक्रिया ज्योति जी,रचना को प्रवाह मिला सस्नेह आभार आपका।

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  12. बहुत सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  13. लेखनी की सुन्दर अभिव्यक्ति ।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      सुंदर सृजन को समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।

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  14. छोटा-सा लेकिन लेखनी की महत्ता को रेखांकित करता अति सुन्दर गीत ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जितेंद्र जी,छंद बद्ध लेखन पर समर्थन उत्साह वर्धन करता है।
      सादर।

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  15. समेटे विश्व की पीड़ा, बहादे प्रेम की गंगा।

    गुणों की खान होती है, चले जब लेखनी सर सर ।।

    क्या बात है !सत्य वचन कुसुम जी,सादर नमन आपको

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    1. सुंदर कामिनी जी मोहक ढ़ंग आपका सृजन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  16. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका गगन जी।
      कलम भावों को स्वरूप देती है वर्ना भाव मूर्त्त ही रहते है।
      समर्थन के लिए सादर आभार आपका।

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  17. कलम लिखती मसी बहती,नयी रचना मुखर होती।
    लिखे कविता सरस सुंदर, नवल रस के धवल मोती।
    बहुत खूब !!
    मनमोहक सृजन ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी, सुंदर सराहना आपकी उत्साहवर्धक और नव उर्जा देती प्रतिक्रिया आपकी सदा मेरे लेखन प्रोत्साहित करने केलिए सस्नेह आभार।

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  18. वही लेखनी सार्थक है जो विश्व प्रेम के गीत रचे। सुंदर, सार्थक रचना प्रिय कुसुम बहन 🙏🙏❤❤🌹🌹

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    1. ढेर सारा आभार रेणु बहन, सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया।

      सस्नेह।

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  19. लेखनी ने क्या क्या नहीं लिखा ..लेखनी की सार्थकता बहुत सुंदर नजरिए से बयान की आपने.।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी रचना को समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
      सस्नेह।

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  20. खूबसूरत रचना । इस छंद की क्या विशेषता है ? जानने की उत्सुकता है ।।

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  21. संगीता जी बहुत बहुत आभार आपका।
    विधाता छंद १२२२,१२२२,१२२२,१२२२ = २८ मात्रा से लिखा जाने वाला छंद है जिसमें १,७,१५,२२वीं मात्रा लघु अनिवार्य है और अंत दो गुरु से होता है चार पद में १ २ ४ समतुकांत होने अनिवार्य है ३री पंक्ति का तुकांत भिन्न होना चाहिए।
    सस्नेह आभार।

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