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Friday 21 December 2018

बिन मुस्कान

मुस्कान

बिन मुस्कान रूप लगे
ज्यों कागज के फूल
देखन में सुंदर लगे
बिन सौरभ निर्मूल।

होठ बिन मुस्कान के
ज्यों बिना चाँद के व्योम
सूने सूने  हैं लगत
ज्यों बिना पात के द्रुम।

खुशी आधी बिन मुस्कान
ज्यों बिन नीर पुष्कर
भाल न अगर मयूर पंखी
लगे अधूरे  मुरलीधर।

स्वागत फीका सा लगे
जब ना लब पर मुस्कान
बिन बिंदी दुल्हन ना सजे
बिना नीर ना भाऐ  घन।

बिन मुस्कान ओ रूपसी
ज्यों बिन ज्योति के आंख
बिन बरखा के सावन
बिन तारों के रात।

        कुसुम कोठारी।

17 comments:

  1. शुभ प्रभात सखी
    वाह !! बेहतरीन रचना 👌
    सादर

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    1. सखी सस्नेह आभार आपका।

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  2. बेहद सुंदर भावपूर्ण रचना सखी

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  3. जी दी बेहद सुंदर रचना

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    1. सस्नेह आभार शशि भाई सदा उत्साह बढाते रहें।

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  4. बहुत सुन्दर कुसुम जी,
    आप यूँ ही मुस्कान बिखेरती रहिए और साथ में किसी रोते हुए बच्चे को हंसाइए भी -
    घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूँ कर लें,
    किसी रोते हुए बच्चे को, हंसाया जाए.

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    1. बहुत सा आभार सर आपकी सराहना सब से अलग और लेखन को प्रेरित करती होती है। आपकी सलाह भी सच जीवन मूल्यों का प्रतिरूप है।
      सादर।

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  5. सस्नेह,आभार
    अवश्य उपस्थित तो निश्चित है।

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  6. बहुत लाजवाब....
    वाह!!!

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    1. बहुत स्नेह भरा आभार सुधा जी।

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  7. बहुत- बहुत प्यारी... रचना बधाई हो कुसुम जी , स्नेह सखी

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    1. ढेर ढेर सा स्नेह आभार सखी सराहना और उत्साह वर्धन के लिये।

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  8. बहुत सुन्दर ...
    मुस्कान ही है जो सुन्दरता प्रदान करती है मुख को ... जीवन डाल देती है कांतिहीन चेहरे में ... हर छंद बेजोड़ है रचना का ...

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  9. वाह बहुत सुन्दर आपकी प्रतिपंक्तियां ।
    सादर आभार सुंदर भावात्मक प्रतिक्रिया के लिये।
    सादर।

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  10. बहुत ही अर्थपूर्ण एवं सरल दोहे। अच्छी रचना है। मुस्कुराते रहिए आप भी, मेरा स्नेह।

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  11. आप आते रहें हम मुस्कुराते ही मिलेगें प्रिय मीना जी ।सादर आभार इस स्नेह का।

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