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Sunday 16 December 2018

सर्द का दर्द

                 सर्द का दर्द

               सर्द हवा की थाप ,
       बंद होते दरवाजे खिडकियां
   नर्म गद्दों में  रजाई से लिपटा तन
और बार बार होठों से फिसलते शब्द
            आज कितनी ठंड है!
         कभी ख्याल आया उनका
         जिन के पास रजाई तो दूर
           हड्डियों पर मांस भी नही ,
                 सर पर छत नही
           औऱ आशा कितनी बड़ी
               कल धूप निकलेगी
           और ठंड कम हो जायेगी
               अपनी भूख,बेबसी,
            औऱ कल तक अस्तित्व
               बचा लेने की लड़ाई
        कुछ रद्दी चुन के अलाव बनायें
                  दो कार्य एक साथ
              आज थोड़ा आटा हो तो
            रोटी और ठंड दोनों सेक लें ।

                        कुसुम कोठरी ।

15 comments:

  1. बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी

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    1. बहुत सा स्नेह भरा आभार सखी ।

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  2. मर्म स्पर्शी

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  3. सुन्दर व मर्म स्पर्शी रचना सखी
    सादर

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    1. प्यार भरा आभार सखी।
      सस्नेह ।

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना कुसुम दी

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    1. बहुत सा स्नेह और आभार बहना ।

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  5. दिल को छूती बहुत भावमयी प्रस्तुति..

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    1. सादर आभार आदरणीय।
      उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया आपकी।

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  6. भावपूर्ण ओर सुंदर सृजन

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    1. बहुत सा आभार आदरणीय, उत्साह वर्धन के लिये।
      सादर।

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  7. बहुत सा आभार लोकेश जी ।

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