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Saturday 1 December 2018

ध्वनि अक्षर आवाज़

ध्वनि अक्षर आवाज।
   
  .    सारा ब्रह्माण्ड ध्वनि और
   प्रतिध्वनियों से गूंजारित रहता
       जब तक हम उन्हें न करते
        अक्षर  रूप  में  हासिल
उनका नही होता कोई स्पष्ट स्वरूप
 अक्षर दे सुनाई  तो आवाज बनते
    ढलते ही स्याही में शब्द बनते
    अलंकृत होते तो काव्य बनते
       लय बद्ध हो तो गीत बनते
     गुनगुनाने लगे तो गजल बनते
   और वही अक्षर कराने लगे बोध
        आत्मा एंव अध्यात्म का
       तो भजन और शास्त्र बनते।
             
                 कुसुम कोठारी।

17 comments:

  1. अक्षर दे सुनाई तो आवाज बनते
    ढलते ही स्याही में शब्द बनते
    सत्य लिखा सखी आपने बहुत सुंदर रचना 👌👌👌

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    1. बहुत सा स्नेह आभार सखी ।

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  2. बहुत सुन्दर सखी 👌

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,कुसुम दी।

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    1. सस्नेह आभार ज्योति बहन ।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ३ दिसंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  5. बहुत सुन्दर....
    अलंकृत होते तो काव्य बनते
    लय बद्ध हो तो गीत बनते
    गुनगुनाने लगे तो गजल बनते

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    1. सुधा जी ढेर सा आभार आपका।

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  6. आज अक्षर पर मैनें दो कृति पढ़ा, आपकी यह कृति मुझे बेहद पसंद आया। अक्षर के विभिन्न यात्राओं को बढिया तरीका से बताया...जिसे हम अनुभव भी कर पाते हैं।
    "...
    वही अक्षर कराने लगे बोध
    आत्मा एंव अध्यात्म का
    तो भजन और शास्त्र बनते।"

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  7. वाह!!कुसुम जी ,अद्भुत!!👌

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    1. शुक्रिया सखी जी बहुत सारा।

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  8. स्याही सा वो समन्दर
    समन्दर सिमटा बूंद में
    कुसुम जी बहुत ही सुंदर रचना है आप की

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    1. जी सादर आभार आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया के लिये ।
      स्वागत है ब्लॉग पर आपका।
      सादर।

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  9. वही अक्षर कराने लगे बोध
    आत्मा एंव अध्यात्म का
    तो भजन और शास्त्र बनते।....... सुन्दर!!!!

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    1. जी बहुत बहुत आभार आदरणीय आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का।
      सादर।

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