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Monday 25 October 2021

पीड़ा कैसे लिखूँ


 पीड़ा कैसे लिखूँ


पीड़ा कैसे लिखूँ

दृग से बह जाती है,

समझे कोई न मगर

कुछ तो ये कह जाती है,

तो फिर हास लिखूँ,

परिहास लिखूँ,

नहीं कैसे जलते

उपवन पर रोटी सेकूँ।

मानवता रो रही, 

मैं हास का दम कैसे भरूँ,

करूणा ही लिख दूँ,

बिलखते भाग्य पर

अपनी संवेदना, 

पर कैसे कोई मरहम

होगा मेरी कविता से,

कैसे पेट भरेगा भूख का,

कैसे तन को स्वच्छ 

वसन पहनाएगी 

मेरी लेखनी।

क्या लू से जलते 

की छाँव बनेगी

मेरी कविता।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

15 comments:

  1. Replies
    1. सादर आभार आदरणीय आपका।

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  2. Replies
    1. जी आत्मीय आभार आपका।
      सादर।

      Delete
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२८-१०-२०२१) को
    'एक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँ'(चर्चा अंक-४२३०)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    Replies
    1. सादर आभार आपका, चर्चा में रचना को स्थान देने के लिए
      हृदय से आभार।
      सादर सस्नेह।

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  4. सार्थक प्रश्न का जवाब देती सुंदर सारगर्भित रचना ।

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    1. हृदय से आभार जिज्ञासा जी,रचना का मर्म समझने के लिए।
      सस्नेह।

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  5. सुन्दर सृजन

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    Replies
    1. जी आत्मीय आभार आपका, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए ।
      सादर।

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  6. मेरी कविता से,
    कैसे पेट भरेगा भूख का,
    कैसे तन को स्वच्छ
    वसन पहनाएगी
    मेरी लेखनी।
    क्या लू से जलते
    की छाँव बनेगी
    मेरी कविता।।
    बहुत ही सार्थक एवं हृदयस्पर्शी सृजन
    समय साक्ष्य है कि लेखन के बल का...परिवर्तन का...आपकी कविता आपके मन की संवेदना को प्रस्फुटित कर पाठक के मन में संवेदना जगायेगी और प्रत्येक संवेदनशील मन अपने इर्दगिर्द किसी को भूखा न रहने देगा।
    लाजवाब सृजन।

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    1. सुधा जी हृदय से आभार आपकी सुंदर मोहक प्रतिक्रिया से रचना अपना आकार पा जाती है।
      स्नेहिल आभार ।

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  7. मानवता रो रही,

    मैं हास का दम कैसे भरूँ,

    करूणा ही लिख दूँ,

    बिलखते भाग्य पर

    अपनी संवेदना, ... वाह! बहुत सुंदर व्यंजना।

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  8. मैं अभिभूत हूं विश्व मोहन जी आप की प्रबुद्ध प्रतिक्रिया से रचना ने अपना अर्थ पा लिया ।
    सादर आभार आपका।

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