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Friday 8 October 2021

अविरल अनुराग


 अविरल अनुराग।


नेह स्नेह की गागरिया में

सुधा लहर सा बहता जाऊँ

खिले प्रीत फुलवारी सुंदर

गीत मधुर से आज सुनाऊँ।


हरित धरा तुम सरसी-सरसी

मैं अविरल सा अनुराग बनूँ

कल-कल बहती धारा है तू

मैं निर्झर उद्गम शैल बनूँ

कभी घटा में कभी जटा में

मनहर तेरी छवि को पाऊँ।।


महका-महका चंदन पीला

सिलबट्टे पर घिसता जाता ‌

तेरे भाल सजा जो घिसकर 

अंतस पुलकित हो लहराता

दीपक की ज्योति तू उज्जवल

मैं बाती बनकर लहराऊँ।।


सूरज की हेमांगी किरणें

वसुधरा को ज्यों रंग जाती 

तमसा के प्रांगण को जैसे

चंदा की चंदनिया भाती

नीली सी  चुनरी फहराना

मैं टिमटिम तारा बन जाऊँ।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

23 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०९-१०-२०२१) को
    'अविरल अनुराग'(चर्चा अंक-४२१२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए।
      मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  2. सुंदरऔर मधुर काव्य सृजन। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आपको।

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    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  3. प्रेमासिक्त ह्रदय का सुकोमल, सुमधुर गान प्रिय कुसुम बहन नए बिम्ब विधान और मोहक प्रतीकों से सुसज्जित प्रस्तुति सराहना से परे हैं। छायावादी कवियों की सी सौम्य और मनभावन शैली में लिखी रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको इस सुन्दर रचना के लिए।🙏🌷🌷🌷❤️🌷

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    1. बहुत बहुत आभार आपका रेणु बहन आपका हर वस्तु को गहनता से देखने का नजरिया उस वस्तु को विशेष बना देती है।
      सस्नेह आभार आपके अतुल्य स्नेह का।

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  4. महका-महका चंदन पीला
    सिलबट्टे पर घिसता जाता ‌
    तेरे भाल सजा जो घिसकर
    अंतस पुलकित हो लहराता
    दीपक की ज्योति तू उज्जवल
    मैं बाती बनकर लहराऊँ।।
    अहा!!!!! सुन्दर 👌👌👌😀🙏

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    1. मैं अभिभूत हूँ रेणु बहन आपकी उपस्थिति नव उर्जा तो है ही साथ ही जीवंतता का संदेश भी है ।
      सस्नेह आभार रेणु बहन।

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  5. हरित धरा तुम सरसी-सरसी

    मैं अविरल सा अनुराग बनूँ

    कल-कल बहती धारा है तू

    मैं निर्झर उद्गम शैल बनूँ

    कभी घटा में कभी जटा में

    मनहर तेरी छवि को पाऊँ।।...हर पंक्ति में सुंदर,सुकोमल मन के भाव पुष्प जैसे खिल रहे हैं,सुंदर नायाब सृजन के लिए बहुत बधाई ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी प्रतिक्रिया सदा रचना को नये अर्थ देती है ।
      सदा स्नेह बनाए रखें।
      सस्नेह।

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  6. हरित धरा तुम सरसी-सरसी
    मैं अविरल सा अनुराग बनूँ
    कल-कल बहती धारा है तू
    मैं निर्झर उद्गम शैल बनूँ
    कभी घटा में कभी जटा में
    मनहर तेरी छवि को पाऊँ।।
    बहुत बहुत बहुत ही प्रभावी और उम्दा, सुंदर रचना

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    Replies
    1. उत्साहवर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ मनीषा जी।
      सस्नेह आभार आपका।

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  7. मनभावन सृजन सखी

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    1. सस्नेह आभार आपका सखी।
      ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति उत्साहवर्धक रही।
      सस्नेह।

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  8. Bahut Umda Prastuti.....
    Mere Blog par aapka swagat hai

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    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  9. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  10. अति मनमोहक सृजन दी।
    भाव और शब्द-शिल्प का संतुलित संयोजन बेहद मनभावन है। हर बंध लाज़वाब है।

    सस्नेह प्रणाम दी
    सादर।

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    1. बहुत बहुत स्नेह आभार श्वेता आपकी थोड़े से गहन शब्द रचना को जादुई स्पर्श दे देते हैं ।
      सस्नेह आभार बहना।

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  11. नेह स्नेह की गागरिया में

    सुधा लहर सा बहता जाऊँ

    खिले प्रीत फुलवारी सुंदर

    गीत मधुर से आज सुनाऊँ।

    बहुत सुन्दर सृजन

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    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना को उर्जा मिली।
      सादर।

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  12. महका-महका चंदन पीला

    सिलबट्टे पर घिसता जाता ‌

    तेरे भाल सजा जो घिसकर

    अंतस पुलकित हो लहराता

    दीपक की ज्योति तू उज्जवल

    मैं बाती बनकर लहराऊँ।।

    बहुत ही मनभावन लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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