Followers

Saturday 28 December 2019

एक ओस बूंद का आत्म बोध


एक ओस बूंद का आत्म बोध

निलंबन हुवा निलाम्बर से ,
भान हुवा अच्युतता का, कुछ क्षण
गिरी वृक्ष चोटी ,इतराई ,
फूलों पत्तों दूब पर देख ,
अपनी शोभा मुस्काई ।
गर्व से अपना रूप मनोहर
आत्म प्रशंसा भर लाया ,
सूर्य की किरण पडी सुनहरी
अहा शोभा द्विगुणीत हुई !
भाव अभिमान के थे अब  उर्ध्वमुखी ।
भूल गई "मैं "अब निश्चय है अंत पास में ,
मैं तुषार बूंद नश्वर,भूली अपना रूप ,
कभी आलंबन अंबर का ,
कभी तृण सहारे सा अस्तित्व ,
पराश्रित ,नाशवान शरीर
या !"मैं "आत्मा अविनाशी 
भूल गई क्यों शुद्ध स्वरूप अपना।

              कुसुम कोठारी।

5 comments:

  1. मंत्रमुग्ध करती रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।

    ReplyDelete
  2. बहुत खूब ... ओस की बूँद ... स्वयं आत्मचिंतन करती ...
    अपने अस्तित्व बोध से बहुत कुछ कहती ...
    लाजवाब अभिव्यक्ति ... नव सन्देश लिए ...

    ReplyDelete
  3. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  4. वाह
    बहुत सुंदर रचना
    सादर

    ReplyDelete