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Saturday 1 June 2019

प्रदूषण और हम

प्रदूषण और हम

मेरे द्वारा लिखे इस आलेख में कोई भी दुराग्रह या पूर्वाग्रह नही है ना किसी समुदाय जाति वर्ग पर  कोई आरोप है सभी नाम(लालाजी, कल्ला जी भल्ला जी या फिर मुल्ला जी और वर्मा जी सब काल्पनिक है) बस सांकेतिक सम्बोधन है मैं आप कोई भी हो सकता है।
हमारे देश में एक विचार ऐसा है जिस पर ज्यादा से ज्यादा समानता है और वह है प्रदूषण फैलाना, ये हम सभी का मिला जुला प्रयास है और वैचारिक संगठ की मिसाल है देखिए...

लालाजी ने केला खाया
केला खाकर मुख बिचकाया
मुख बिचका के फेंका छिलका
छिलका फेंक फिर कदम बढाया
पांव के नीचे छिलका आया
लालाजी जब गिरे धड़ाम मुख से निकला हाये राम"। ( संकलित जिसने ये कविता बनाई खूब बनाई है)

लोगों ने लालाजी को तो उठा लिया छिलका अभी तक वहीं पड़ा है कितनी हड्डियां तोड़ चुका
पर शाश्वत सा वहीं पड़ा है हर रोज नई फिसलन लेकर।

भल्ला जी ने मूंगफली खाई
"कचरा कहां ड़ालू भाई"
दोस्त
"अरे क्यों परेशान होते हो
डाल दो न जहां भी"
"पर ये तो स्वछता के विरुद्ध है"
"हे हे हे अकेला कर देगा पुरे भारत को स्वच्छ, डाल दे जहां पहले से पड़ा है उसी के ऊपर"

मुल्ला जी ने बांग लगाई
ध्वनि प्रदूषण खूब फैलाई
कुछ तो चिंतन कर मेरे भाई
" क्यूं? हर और तो जोर जोर से बजते लाउडस्पीकर है  कहीं भजन कहीं फिल्मी गीत और कहीं शादी संगीत संध्या उस पर भाषण बाजी यूं चिल्लाना जैसे... फिर मैं ही क्यूं टेर बंद करूं अपनी।"

" कल्ला  जी के घर नई गाड़ी आई है।"
"अरे उनके पास पहले से तो तीन है फिर लोन लेकर ले आयें होंगे चलो मैं भी एक लोन एप्लिकेशन कर देता हूं गाड़ी के लिए"।

" पापा वर्मा अंकल का पुरा घर सेंट्रली ए सी है हमारे तो बस तीन कमरों में ही है पापा अपने भी पुरे ए सी लगवा लो मेरी भी फ्रेंड'स में आखिर कुछ तो धाक हो आपकी और मेरी ।

पिकनिक मनाई बड़ी हंसी खुशी और आते वक्त सारा कूड़ा ड़ाल आये नदी में समुद्र में तालाब में ।

फैक्ट्रियों का कूड़ा नदी तालाबों और जल निकासी के नालों में डालना हमारा नैतिक कार्य हैं।
फैक्ट्रियां धुंवा उगल रही है तो  क्या फैक्ट्रियां अमृत निकालेगी...

आदि आदि और इन सब मे हम प्रायः सभी सम्मलित हैं।
हैं ना? हम सब में एक विचार धारा बिना किसी विरोध के।

         कुसुम कोठारी।

16 comments:

  1. जब तक सब यह सोचते रहेंगे उसनेे किया,वो भी तो कर रहा तो हम क्यों नहीं करें हमारे अकेले के करने से क्या होगा तब तक कहीं भी कोई सुधार नहीं हो सकता है। बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति सखी

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    1. सही कहा सखी आपने सभी को प्रतिबद्धता रखनी होती है।
      सार्थक प्रतिक्रिया आपकी।
      सस्नेह आभार

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  2. सत्य वचन,दिखावे की प्रवृति,भौतिक चकाचौंध के वशीभूत हो हर कोई यह गलती कर रहा है। लोगों को घर की सफाई से मतलब है।कूड़ा यहां-वहां फेंकना आदत में
    शुमार है। दोष सरकार के मत्थे ,यही प्रवृति
    पर्यावरण की दुश्मन बन रही है।

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    1. बहुत सुंदर व्याख्यात्मक टिप्पणी से रचना के भाव स्पष्ट हुवे बहुत सा स्नेह प्रिय बहन ।

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  3. वाह! बहुत तीखा व्यंग्य सच को उजागर करता।

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    1. जी सादर आभार आपका प्रोत्साहन मिला सक्रिय प्रतिक्रिया सदा उत्साह वर्धन करती है।
      सादर

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  4. इंसान की मनोदशा खासकर हमारे भारतीयों की पर बहुत ही सटिक व्यंग। हम खुद कभी सुधारना नहीं चाहते और दोष दूसरों को देते हैं।

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    1. सही ज्योति बहन सुधार पहले खुद फिर आस पास फिर आगे वृहद रूप में हो तो सफल होते हैं।
      आपकी सराहना और समर्थन से लेखन मुखरित हुवा।

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  5. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-06-2019) को

    " नौतपा का प्रहार " (चर्चा अंक- 3355)
    पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है


    अनीता सैनी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका प्रोत्साहन मिला मैं अवश्य चर्चा मंच पर आऊंगी।
      सस्नेह आभार।

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  6. बिलकुल सही चित्रण ,कुसुम जी यदि हम गौर करे तो देखेंगे ये हरकत हम और हमसे पहले की पीढ़ियां ही ज्यादा करते हैं आज के युवापीढ़ी फिर भी बहुत हद तक इन हरकतों से बचने और बचने की ही कोशिश करते हैं। मैंने देखा हैं दिल्ली में जब से स्वछता अभियान शुरू हुआ युवा और बच्चे बड़े ही सतर्क रहते हैं। कई बार तो दुसरो का फेका कचरा भी उठा कर फेकते हैं ,छोटे छोटे बच्चे अपने बड़ो को सड़क पर कचरा फेकने से भी रोकते हैं,बच्चो के जागरूकता के कारण दिल्ली तो जमीनी गंदगी से फिर भी मुक्त हो रही हैं। हां ,मुंबई का अब तक बुरा हाल हैं। हम बड़े ही नहीं सुधरते ,शुरू से आदत जो बिगड़ी हैं। सराहनीये रचना ,सादर नमस्कार

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    1. कामिनी बहन आपने सही कहा आज पढने वाले बच्चों में ये मूल्य हमारी पीढ़ी से बहुत ज्यादा है वो स्वयं तो इस मामले में प्रतिबद्ध हैं ही साथ ही अपने बड़ो को भी सीख देते हैं, जो गलत है उसे गलत ही कहते हैं। और युवा पीढ़ी भी सजग हो गई है । फिर भी अभी बहुत सुधार की जरूरत है, जब जागो सवेरा उसी समय से।
      बहुत सा आभार आपकी शानदार प्रतिक्रिया से रचना को समर्थन मिला।
      सस्नेह ।

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  7. Replies
    1. सादर आभार आदरणीय दी लेखन को आपका समर्थन मिला ।
      सादर।

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  8. सटीक व्यंग्य ।सार्थक विचारात्मक रचना ।
    सादर ।

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  9. जी बहुत सा आभार आपका उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
    सस्नेह।

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