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Saturday 15 June 2019

पिता क्या होते हैं

आज पितृ दिवस पर

देकर मुझ को छांव घनेरी
कहां गये तुम हे तरूवर
अब छांव कहां से पाऊं

देकर मुझको शीतल नीर
कहां गये हे नीर सरोवर
अब अमृत कहां से पाऊं

देकर मुझको चंद्र सूर्य
कहां गये हे नीलांबर
अब प्राण वात कहां से पाऊं

देकर मुझको आधार महल
कहां गये हे धराधर
अब मंजिल कहां से पाऊं

देकर मुझ को जीवन
कहां गये हे सुधा स्रोत
अब हरितिमा कहां से पाऊं।

          कुसुम कोठरी।

14 comments:

  1. देकर मुझ को छांव घनेरी
    कहां गये तुम हे तरूवर
    अब छांव कहां से पाऊं...
    पिता को खोकर कोई कैसे जीता है कोई उससे पूछे जो पिता को बचपन में ही खो चुका है। अत्यंत ही भाव प्रवण रचना हेतु बधाई आदरणीया कुसुम जी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका प्रोत्साहन के लिए सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।

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  2. देकर मुझ को जीवन
    कहां गये हे सुधा स्रोत
    अब हरितिमा कहां से पाऊं।
    अप्रतिम ... बहुत कुछ कहती पिता को समर्पित अनुपम रचना ।

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
      सस्नेह ।

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  3. देकर मुझ को छांव घनेरी
    कहां गये तुम हे तरूवर
    अब छांव कहां से पाऊं
    बस उनकी शीतल छाँव का एहसास ही बाकी हैं ,बहुत कुछ कहती मार्मिक रचना कुसुम जी

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    1. बहुत सा आभार कामिनी जी सच बस स्मृतियों में भी एक आभास है ।
      आपकी प्रतिक्रिया से भावों को समर्थन मिला।
      सस्नेह

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  4. बहुत ही भावस्पर्शी उद्बोधन पिता के नाम प्रिय कुसुम बहन | पिता के जाने के बाद ना कोई छाँव बचती है ना कोई सुधा सरोवर ! उनके जाने के साथ बहुत सी चींजें जीवन से विदा हो जाती हैं जिनका विकल्प कभी जीवन में नहीं मिल पाता | सचमुच एक ऐसा कान्धा खो जाता है जिसपर सर रखकर हमें जीवन का सबसे बड़ा सुकून मिलता है | मार्मिक रचना के लिए साधुवाद | साथ में मेरा प्यार आपके लिए |

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    1. आपकी सराहना की पंक्तियाँ रचना के समानांतर उसमें निहित भावों को समर्थन देरी है आपकी सुंदर सक्रिय प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला
      बहुत बहुत सा स्नेह रेणु बहन

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  5. बहुत ही सुन्दर और मार्मिक रचना सखी
    सादर

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    1. सस्नेह ढेर सा बहना।
      बहुत बहुत आभार।
      सस्नेह

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  6. अधिकार, क्षोभ, करुणा, आत्मीयता, राग, उछाह... सब कुछ।

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    1. बहुत सुंदर सराहना के शब्द आपका बहुत सा आभार रचना को विशेष संबोधन मिला।
      सादर।

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  7. पिता को समर्पित भाव मन को छू रहे हैं ...
    गहरे शब्द ...

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  8. देकर मुझको आधार महल
    कहां गये हे धराधर
    अब मंजिल कहां से पाऊं... बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी 👌

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