Followers

Thursday 11 April 2019

धर्म क्या है मेरी नजर में

धर्म

*धर्म* यानि जो धारण  करने योग्य हो
 क्या धारण किया जाय  सदाचार, संयम,
 सहअस्तित्व, सहिष्णुता, सद्भाव,आदि

धर्म इतना मूल्यवान है...,
कि उसकी जरूरत सिर्फ किसी समय विशेष के लिए ही नहीं होती, अपितु सदा-सर्वदा के लिए होती है ।
बस सही धारण किया जाय।

गीता का सुंदर  ज्ञान पार्थ की निराशा से अवतरित हुवा ।
कहते हैं कभी कभी घोर निराशा भी सृजन के द्वार खोलती है। अर्जुन की हताशा केशव के मुखारविंद से अटल सत्य बन
 करोड़ों शताब्दियों का अखंड सूत्र बन गई।

विपरीत परिस्थितियों में सही को धारण करो, यही धर्म है।
 चाहे वो कितना भी जटिल और दुखांत हो.....

पार्थ की हुंकार थम गई अपनो को देख,
बोले केशव चरणों में निज शीश धर
मुझे इस महापाप से मुक्ति दो हे माधव
कदाचित मैं एक बाण भी न चला पाउँगा ,
अपनो के लहू पर कैसे इतिहास रचाऊँगा,
संसार मेरी राज लोलुपता पर मुझे धिक्कारेगा
तब कृष्ण की वाणी से श्री गीता अवतरित हुई ।
कर्म और धर्म के मर्म का वो सार ,
युग युगान्तर तक  मानव का
मार्ग दर्शन करता रहेगा ।
आह्वान करेगा  जन्म भूमि का कर्ज चुकाने का
मां की रक्षा हित फिर देवी शक्ति रूप धरना होगा
केशव संग पार्थ बनना होगा ,
अधर्म के विरुद्ध धर्म युद्ध
लड़ना होगा।

                 कुसुम कोठारी
              

27 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-04-2019) को " बैशाखी की धूम " (चर्चा अंक-3304) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    - अनीता सैनी

    ReplyDelete
    Replies
    1. इस सम्मान के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।
      सस्नेह

      Delete
  2. बहुत सही कहा कुसुम दी कि धर्म याने जो धारण करने योग्य हो। बहुत सुंदर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. समर्थन के लिए बहुत सा आभार आपका बहना ।
      सस्नेह

      Delete
  3. धर्म* यानि जो धारण करने योग्य हो
    क्या धारण किया जाय सदाचार, संयम,
    सहअस्तित्व, सहिष्णुता, सद्भाव,आदि
    बहुत खूब......, बेहतरीन लेख 👌👌👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. मीना जी बहुत सा आभार आपका उत्साह वर्धन के लिये ।आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
      सस्नेह ।

      Delete
  4. वाह दीदी जी अद्भुत अर्थ दिया आपने धर्म का

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार प्रिय आंचल आपका स्नेह और सराहना दोनो अतुल्य है मेरे लिए।
      सस्नेह

      Delete
  5. अधर्म के विरुद्ध धर्म युद्ध
    लड़ना होगा।
    वाह बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है।
      सस्नेह।

      Delete
  6. *धर्म* यानि जो धारण करने योग्य हो
    क्या धारण किया जाय सदाचार, संयम,
    सहअस्तित्व, सहिष्णुता, सद्भाव,आदि
    बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमस्कार आप को

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।

      Delete
  7. धर्म जो धारण किया जाए ...
    सच कहा है ... अनेकों बार इंसान विचलित होता है इस मार्ग से ... पर इश्वर का साथ, उसका स्मरण करके लौटता है इस मार्ग पर हमेशा ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत सा आभार रचना को सार्थक समर्थन देती प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुवा ।

      Delete
  8. पार्थ की हुंकार थम गई अपनो को देख,
    बोले केशव चरणों में निज शीश धर
    मुझे इस महापाप से मुक्ति दो हे माधव
    कदाचित मैं एक बाण भी न चला पाउँगा ,
    अपनो के लहू पर कैसे इतिहास रचाऊँगा,
    संसार मेरी राज लोलुपता पर मुझे धिक्कारेगा
    बहुत खूब दी. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति 👏👏

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सा स्नेह सुधा जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।
      ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति उत्साह वर्धक है।
      सस्नेह आभार

      Delete

  9. विपरीत परिस्थितियों में सही को धारण करो, यही धर्म है।
    चाहे वो कितना भी जटिल और दुखांत हो.....
    सबसे सटीक एवं सही परिभाषा धर्म की। सुंदर रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मीना जी आपकी उपस्थिति ही रचना का पारितोष है।

      Delete
  10. विपरीत परिस्थितियों में सही को धारण करो, यही धर्म है।
    चाहे वो कितना भी जटिल और दुखांत हो.....

    लाजवाब सृजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार आपका प्रोत्साहन के लिए ।

      Delete
  11. धर्म जो धारण करने योग्य हो...
    बहुत सटीक...
    विपरीत परिस्थितियों में सही को धारण करो, यही धर्म है।
    चाहे वो कितना भी जटिल और दुखांत हो.....
    वाह!!!
    उत्कृष्ट रचना...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार सुधा जी।

      Delete
  12. वाह! बहुत सुन्दर!!!

    ReplyDelete