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Friday 23 November 2018

गुमगश्ता रुमानियत

गुमगश्ता रुमानियत

फूल दिया किये उनको खिजाओं में भी
पत्थर दिल निकले फूल ले कर भी ।

रुमानियत की बातें न कर ए जमाने
अज़ाब ए गिर्दाब में गुमगश्ता है जिंदगी भी।

संगदिलों से कैसी परस्ती ए दिल
वफा न मिलेगी जख्म ए ज़बीं पा के भी।
 
चाँद तारों की तमन्ना करने वाले सुन
जल्वा ए माहताब को चाहिये फलक भी।

"शीशा हो या दिल आखिर टूटता" जरुर
क्यों लगाता है जमाना फिर फिर दिल भी ।

तूफानों में उतरने से डरता है दरिया में
डूबती है कई कश्तियां साहिल पर  भी।

               कुसुम कोठारी।
(अज़ाब =दर्द, गिर्दाब =भंवर, ज़बीं =माथा, सर)

26 comments:

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    1. बहुत सा आभार सुधा जी ।

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  2. शीशा हो या दिल आखिर टूटता" जरुर
    क्यों लगाता है जमाना फिर फिर दिल भी ।
    बेहतरीन रचना सखी

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    1. सखी आभार सस्नेह आपका।

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  3. बेहतरीन रचना सखी 👌

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 24/11/2018 की बुलेटिन, " सब से तेज़ - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. अशेष आभार मेरी रचना को चुनने के लिये।
      सादर।

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  5. तूफानों में उतरने से डरता है दरिया में
    डूबती है कई कश्तियां साहिल पर भी।
    बहुत खूब...., लाजवाब ग़ज़ल !!

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    1. मीना जी आपके स्नेह से अभिभूत हुई।
      सादर सस्नेह।

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  6. बहुत सुन्दर

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  7. बहुत ख़ूब कुसुम जी.
    आपने तो इतना डरा दिया है कि हम तो डूबने के डर से मजधार और साहिल ही क्या, समुन्दर, नदी, झील या तालाब की तरफ़ झांकेंगे भी नहीं. और रही दिल टूटने की बात तो दिल कभी किसी से लगाएंगे ही नहीं.

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    1. सादर आभार आदरणीय,
      बोझिल वातावरण को खुशनुमा बनाना कोई आपसे सीखे सर ।
      बस यूं ही सभी को स्नेह बांटते रहे।
      पुनः आभार ।

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २६ नवंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  9. Replies
    1. ब्लॉग पर स्वागत आपका दीपशिखा जी,
      स्नेह उपस्थिति का आभार।

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  10. "शीशा हो या दिल आखिर टूटता" जरुर
    क्यों लगाता है जमाना फिर फिर दिल भी ।
    बहुत सुन्दर.... भावप्रवण रचना...

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    1. सुधा जी आपकी सदा उत्साह बढाती प्रतिक्रिया का स्नेह आभार ।

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  11. फूल दिया किये उनको खिजाओं में भी
    पत्थर दिल निकले फूल ले कर भी ।!!
    बहुत खूब कुसुम बहन |
    खिंजा में फूल लेकर भी वे अपने ना हुए --
    बहारों की उन्हें कद्र क्या होगी ?
    रोमानियत का ये रंग अपनी मिसाल आप है | सभी शेर बहुत उम्दा और अर्थपूर्ण | सस्नेह बधाई बहना |

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    1. रेनू बहन सस्नेह आभार, आपके मनभावन उद्गगारों से रचना को सार्थकता मिली ।
      सदा आपका समर्थन मुझे और अच्छा लिखने को प्रोत्साहित करता है।
      सस्नेह।

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  12. डूबती है कई कश्तियां साहिल पर भी।
    कुसुम जी बहुत खूब.. लाजवाब ग़ज़ल !!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया ,ब्लॉग पर स्वागत है आपका ।
      सादर।

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