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Sunday, 30 October 2022

कविता का ह्रास


 कविता का ह्रास


शब्द आड़म्बर फसी सी

लेखनी भी है बिलखती।


कौन करता शुद्ध चिंतन

भाव का बस छोंक डाला

सौ तरह पकवान में भी

बिन नमक भाजी मसाला

व्याकरण का देख क्रंदन

आज फिर कविता सिसकती।।


रूप भाषा का अरूपा

स्वर्ण में कंकर चुने है

हीर जैसी है चमक पर

प्रज्ञ पढ़ माथा धुने है

काव्य का अब नाम बिगड़ा

विज्ञ की आत्मा तड़पती।।


स्वांत सुख की बात कह दो

या यथार्थी लेख उत्तम

है सभी कुछ मान्य लेकिन

काव्य का भी भाव सत्तम

लक्षणा सँग व्यंजना हो

उच्च अभिधा भी पनपती।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday, 26 October 2022

भवप्रीता


 भव प्रीता


बन के उतरो विभा धरा पर

पथ पर हाथ बिछा देंगे  ।

कोमल कली विश्व प्रांगण की 

फूलों का श्रृंगार धरेंगे।


शक्ति रूप धरलो मातंगी

सूर्य ताप लेकर आना

सुप्त पड़े लद्धड़ जीवन में

नव भोर नव  क्रांति लाना

कभी पैर छाले भी सिसके 

अब न ऐसे घाव करेंगें।


चांद सूर्य की ज्योत तुम्ही हो

तुम हो वीरों की थाती

जड़ जंगम आधार तुम्हारे

सभी रूप में मन भाती

भवप्रीता बन के आ जाना

अब न कभी गात दहेंगे।।


थके हुए वासर के जैसा 

बिगड़ा धरा का हाल है

जलती चिताएँ ज्वाल मुख सी

संकाल का जंजाल है

यौवन वसुंधरा का उजड़ा

तुम आवो बाग लहेंगे।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Sunday, 23 October 2022

सुधार कैसा


 1212 212 122 1212 212 122.


सुधार कैसा


रहे गरीबी सदा बिलखती वहाँ व्यवस्था सुधार कैसा।

नहीं करेंगे कभी  नियोजित उन्हें  मिला है प्रभार कैसा।।


विवेक जिसका रहे भ्रमित सा प्रशांत मन बस दिखा रहा है।

भरा हुआ द्वेष जिस हृदय में अरे कहो वो उदार कैसा।।


घड़ी घड़ी जो दिखा रहें हैं कपट गठन की मृषा लिखावट।

जहाँ बही बस बता रही हो नहीं सफल ये सुधार कैसा।।


परम हितैषी पुरुष जगत में परोपकारी सदा रहें हैं।

करें सभी का भला यहाँ जो नहीं डरें हो विकार कैसा।।


न कर सके जो मनन बिषय पर  परोसते अधपकी समझ को।

इधर उधर से उठा लिया है पका नहीं वह विचार कैसा।


नदी मचलती चले लहरती कभी सरल और तेज कभी।

बहाव को जो न रोक पाए भला कहो तो कगार कैसा।।


न हित भलाई करे किसीकी दया  क्षमा भी नहीं हृदय में।।

गिरे स्वयं संघ भी  प्रताड़ित गिरा हुआ वह अगार कैसा ।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday, 18 October 2022

कब ढलेगी रात गहरी


 कब ढ़लेगी रात गहरी



आपदा तांडव घिरा है 

सो रहे सब ओर पहरी 

दुर्दिनों का काल लम्बा 

कब ढलेगी रात गहरी।


प्राण बस बच के रहे अब

योग इतना ही रहा क्यों 

बैठ कर किसको बुलाते 

बात हाथों से गई ज्यों 

देव देवी मौन हैं सब 

खूट खाली आज अहरी।।


वेदनाएँ फिर बढ़ी तो 

फूट कर बहती रही सब 

आप ही बस आप का है 

मर चुके संवेद ही जब 

आँधियों के प्रश्न पर फिर

यह धरा क्यों मौन ठहरी।।


झाड़ पर हैं शूल बाकी 

पात सारे झर गये हैं 

वास की क्यूँ बात कहते

दौर सारे ही नये हैं 

बाग की धानी चुनर पर 

रेत के फैलाव लहरे।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday, 11 October 2022

जीवन विरोधाभास


 जीवन विरोधाभास


सच सामने ठगता रहता

स्वप्न कभी फिर दहलाये।


ऐसी घातक चोट लगी थी 

अपनों ने जब घाव दिया

अन्तस् बहता नील लहू अब

शंभू बनकर गरल पिया

छाँव जलाये छाले उठते

धूप उन्हें फिर सहलाये।।


अदिठे से घाव हृदय पट पर

लेप सघन जो मांग रहे

मौन अधर थर-थर कंपति हैं

मूक दृगों की कौन कहे

ठोकर खाई जिस पत्थर से

बैठ वहाँ मन बहलाये।।


जाने कैसे रूप बदल कर

पाल वधिक हो जाता है

स्वार्थ जहाँ पर शीश उठाता

हाथ-हाथ को खाता है

पोल खुली है अब तो उनकी

कर्ण कभी जो कहलाये।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday, 4 October 2022

प्रारब्ध या व्यवस्था


 प्रारब्ध या व्यवस्था

 

रेत की आँधी चले तो

कौन कर्मठ आ बुहारे

भाग्य का पलड़ा झुके तो

कौन बिगड़ी को सुधारे।।


पैर नंगे भूख दौड़े

पाँव में छाले पड़ें हैं

दैत्य कुछ भेरुंड खोटे

पंथ रोके से खड़ें हैं

घोर विपदा सिंधु गहरा

पार शिव ही अब उतारे।।


अन्न का टोटा सदा ही

हाथ में कौड़ी न धेला

अल्प हैं हर एक साधन

हाय ये जीवन दुहेला

अग्र खाई कूप पीछे

पार्श्व से दुर्दिन पुकारे।।


दीन के दाता बने जो

रोटियाँ निज स्वार्थ सेके

भूख का व्यापार करते

 पुण्य का बस नाम लेके

राख होती मान्यता को

आज कोई क्यों दुलारे।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Monday, 3 October 2022

माँ सिद्धिदात्री नवम दिवस


 नवरात्रा का पूर्ण आहुति दिवस, माँ सिद्धिदात्री आपके जीवन में सदा प्रसन्नता भर्ती रहें, हार्दिक शुभकामनाएं 🌷🌷🙏🙏.


माँ सिद्धिदात्री


माँ सिद्धिदात्री सिद्धि देती,आशा पूरण करती।

मन वांछित फल देने वाली, रोग शोक भय हरती।

गदा चक्र डमरू पुण्डरीक, चार हाथ में धारे।

सभी कामना पूरी करके, काज सँवारे सारे।।