यादों का पपीहा
शज़र-ए-हयात की शाख़ पर
कुछ स्याह कुछ संगमरमरी
यादों का पपीहा।
खट्टे मीठे फल चखता गीत सुनाता
उड़-उड़ इधर-उधर फुदकता
यादों का पपीहा।
आसमान के सात रंग पंखों में भरता
सुनहरी सूरज हाथों में थामता
यादों का पपीहा
चाँद से करता गुफ़्तगू बैठ खिडकी पर
नींद के बहाने बैठता बंद पलकों पर
यादों का पपीहा।
टुटी किसी डोर को फिर से जोड़ता
समय की फिसलन पर रपटता
यादों का पपीहा।
जीवन राह पर छोड़ता कदमों के निशां
निड़र हो उड़ जाता थामने कहकशाँ
यादों का पपीहा।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'