बस एक मुठ्ठी आसमां
आकर हाथों की हद में सितारे छूट जाते हैं
हमेशा ख़्वाब रातों के सुबह में टूट जाते हैं।
मंजर खूब लुभाते हैं, वादियों के मगर,
छूटते पटाखों से भरम बस टूट जाते हैं ।
चाहिए आसमां बस एक मुठ्ठी भर फ़कत,
पास आते से नसीब बस रूठ जाते हैं ।
सदा तो देते रहे आम औ ख़ास को मगर,
सदाक़त के नाम पर कोरा रोना रुलाते हैं।
तपती दुपहरी में पसीना सींच कर अपना,
रातों को खाली पेट बस सपने सजाते हैं।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।