Followers

Thursday, 16 March 2023

और शरद गया


 और शरद गया


भानु झाँके बादलों से

शीत क्यों अब भीत देती

वो चहकती सुबह जागी

नव प्रभा को प्रीत देती।।


लो कुहासा भग गया अब

धूप ने आसन बिछाया

ऐंद्रजालिक ओस ओझल

कौन रचता रम्य माया

पर्वतों ने गीत गाए

ये पवन संगीत देती।।


मोह निद्रा त्याग के तू

छोड़ दे आलस्य मानव

कर्म निष्ठा दत्तचित बन

श्रेष्ठ तू हैं विश्व आनव

उद्यमी अनुभूतियाँ ही

हार में भी जीत देती।।


बीज माटी में छिपे से

अंकुरण को हैं मचलते

नेह सिंचित इस धरा पर

मानवों के भाग्य पलते

और तम से जो डरा है

सूर्य किरणें मीत देती।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

No comments:

Post a Comment