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Sunday 22 May 2022

निराशा को धकेलो।


 निराशा को धकेलो


चारों ओर जब निराशा

के बादल मंडराए

प्रकाश धीमा सा हो

अंधेरा होने को हो

कुछ भी पास न हो

किसी का साथ न हो

मन डूबा सा जाए

कुछ समझ न आए

तब एक बार शक्ति लगाकर

अपने खोये आत्मविश्वास 

को ललकारो, उठो चलो

लगेगा मैं चल सकता हूँ

आने वाली सूर्य रश्मियाँ

काफी चमक के साथ

स्वागत करेगी

यह निश्चय ही होगा

मन  में  ठान  लो।।


  कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

24 comments:

  1. मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत !!सुंदर आह्वान !!

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    1. जी सुंदर बात कही आपने रचना को समर्थन मिला ।
      हृदय से आभार आपका।
      सस्नेह।

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  2. आपकी लिखी रचना सोमवार २३ मई 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    Replies
    1. This comment has been removed by the author.

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    2. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय, पाँच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 23 मई 2022 को ' क्यों नैन हुए हैं मौन' (चर्चा अंक 4439) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

      Delete
  4. Replies
    1. हृदय से आभार आपका ।
      सादर।

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  5. आशा का संचार करती सुंदर रचना
    बधाई

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    Replies
    1. जी से आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  6. आशा और विश्वास जगाती सुंदर रचना

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    Replies
    1. आत्मीय आभार आपका अनिता जी। बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए।
      सस्नेह।

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  7. जीवन की
    सूखी लकड़ी की नोंक में
    सोयी नन्हीं-सी आशा
    जब अंधेरी परिस्तिथियों की
    ख़ुरदरी ज़मीं से रगड़ाती हैं
    पलभर जीने की चाह में
    संघर्षरत
    दामिनी-सी चमककर
    उजालों की दुनिया से
    साक्षात्कार करवाती है।
    ----
    सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती सुंदर अभिव्यक्ति दी।
    प्रणाम
    सादर।

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    Replies
    1. वाह! श्वेता आपने सृजन के समानांतर सुंदर से भाव उकेर कर रचना को नये आयाम दिये।
      सस्नेह आभार।
      बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आपकी।

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  8. प्रेरणादायक रचना आदरणीय ।

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    Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर।

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  9. अपने खोये आत्मविश्वास

    को ललकारो, उठो चलो

    लगेगा मैं चल सकता हूँ

    आने वाली सूर्य रश्मियाँ

    काफी चमक के साथ

    स्वागत करेगी

    यह निश्चय ही होगा

    मन में ठान लो।।
    बहुत ही प्रेरक एवं प्रेरणादायक सृजन
    वाह!!!

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    Replies
    1. सस्नेह आभार आपका सुधा जी रचना पर भावपूर्ण टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  10. आत्मविश्वास ही समस्त सफलताओं का सूत्रधार है।संसार इसी से जन्मी हर आशा पर जीवित है।प्रेरक रचना के लिए बधाई प्रिय कुसुम बहन 🙏🌺🌺♥️♥️

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    1. बहुत सुंदर बात कही आपने भावों को समर्थन देती सुंदर प्रतिक्रिया प्रिय रेणु बहन।
      सस्नेह आभार आपका।

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  11. सही कहा। यदि निराशा को नहीं धकेला गया तो जीवन ही अंधकारमय हो जाएगा। प्रभावी शब्द।

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    1. रचना को समर्थन देती प्रतिक्रिया ने लेखनी को नई ऊर्जा और लेखन को स्थायित्व दिया।
      सस्नेह आभार आपका अमृता जी।

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  12. बहुत सुंदर रचना

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