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Sunday 18 July 2021

क्लांत सूरज


  क्लांत सूरज


दिन चला अवसान को अब 

नील  नभ पर स्वर्ण घेरा 

काल क्यों रुकता भला कब 

रात दिन का नित्य फेरा ।।


थक चुका था सूर्य चलकर 

क्लांत मन ढलता कलेवर 

ढ़ांकता कलजोट कंबल 

सो गया आभा  छुपाकर 

ओढ़ता चादर तिमिरमय 

सांझ का मध्यम अँधेरा।।


झिंगुरी हलचल मची है 

दीप जलते घाट ऊपर 

उड़ रहे जुगनू दमकते 

शांत हो बैठा चराचर 

लो निकोरा चाँद आया 

व्योम पर अब डाल डेरा।।


हीर कणिका सा चमकता 

कांति मय है तारिका दल 

पेड़ पत्तो में छुपी जो 

चातकी मन प्राण हलचल 

दूर से निरखे प्रिया बस 

चाव मिलने का घनेरा।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।

42 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. आलोक जी बहुत बहुत आभार आपका ।
      सादर।

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  2. वाह! बहुत सुंदर शब्द चित्र।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी।
      आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना को उर्जा मिली।
      सादर।

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-7-21) को "प्राकृतिक सुषमा"(चर्चा अंक- 4131) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. मैं अभिभूत हूं कामिनी जी मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
      सादर सस्नेह।

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  4. बहुत ही सुंदर शब्द चित्र।
    सादर

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    1. स्नेह आभार आपका अनिता।
      रचना को प्रवाह मिला ।
      सस्नेह।

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  5. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  6. समय चक्र को उजागर करती खूबसूरत अभिव्यक्ति

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    1. बहुत बहुत आभार आपका गगन जी , उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया रचना को प्रवाह देती सी।
      सादर।

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  7. क्या बात है दी
    बेहद खूबसूरत शब्द चित्र।
    आपकी रचनाओं का शब्द विन्यास, भाव सौंदर्य निःशब्द कर जाती है सदैव।
    सप्रेम
    प्रणाम दी।

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार श्वेता आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से रचना के भाव और भी स्पष्ट हुए।
      सस्नेह।

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  8. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 21 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मैं अभिभूत हूं पम्मी जी मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      पाँच लिंक में रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
      सादर सस्नेह।

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  9. झिंगुरी हलचल मची है

    दीप जलते घाट ऊपर

    उड़ रहे जुगनू दमकते

    शांत हो बैठा चराचर

    लो निकोरा चाँद आया

    व्योम पर अब डाल डेरा।।

    अद्भुत रचना सखी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।
      रचना प्रवाहित हुई।
      सस्नेह।

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  10. पेड़ पत्तो में छुपी जो

    चातकी मन प्राण हलचल

    दूर से निरखे प्रिया बस

    चाव मिलने का घनेरा।। सुंदर और अनुपम सृजन।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका संदीप जी।
      उत्साह वर्धन करती सार्थक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  11. अहा , कितना सुंदर विवरण ।
    बहुत सुंदर चित्रण ।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी, उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया और आपका स्नेह सदा मिलता रहे ।
      सादर सस्नेह।

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  12. दिन चला अवसान को अब
    नील नभ पर स्वर्ण घेरा
    काल क्यों रुकता भला कब
    रात दिन का नित्य फेरा ।।
    वाह!!मनमोहक भावाभिव्यक्ति । अति सुन्दर सृजन ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से लेखन को नव उर्जा मिलती है ।
      और आंतरिक खुशी भी।
      सस्नेह।

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  13. बहुत ही सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साह वर्धन हुआ, आपकी प्रतिक्रिया से।
      सादर।

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  14. थक चुका था सूर्य चलकर

    क्लांत मन ढलता कलेवर

    ढ़ांकता कलजोट कंबल

    सो गया आभा छुपाकर

    ओढ़ता चादर तिमिरमय

    सांझ का मध्यम अँधेरा।।

    बहुत ही उम्दा रचना और शब्दों का बेहतरीन चयन!

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    Replies
    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार मनीषा जी।
      आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन में नव उर्जा का संचार हुआ ।
      सस्नेह।

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  15. बहुत सुन्दर सृजन

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मनोज जी।
      आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर।

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  16. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका प्रसन्नवदन जी।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  17. हीर कणिका सा चमकता
    कांति मय है तारिका दल
    पेड़ पत्तो में छुपी जो
    चातकी मन प्राण हलचल
    दूर से निरखे प्रिया बस
    चाव मिलने का घनेरा।।
    वाह!!!!
    बहुत ही मनमोहक शब्दचित्रण
    अद्भुत बिम्ब एवं लाजवाब व्यंजनाएं
    वाह वाह...

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    1. आपकी सुंदर मोहक प्रतिक्रिया से स्वयं को फिर से पढ़ने का मन बना जाता है ।
      गहराई से हर शब्द पर आपकी दृष्टि सदा रचना को नव आयाम देती है।
      स्नेह आभार सुधा जी।
      सस्नेह।

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  18. एक सुंदर पेशकश आपकी आदरणीय ।
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  19. बहुत ही सुन्दर कृति

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार आपका।
      सस्नेह।

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  20. झिंगुरी हलचल मची है
    दीप जलते घाट ऊपर
    उड़ रहे जुगनू दमकते
    शांत हो बैठा चराचर
    लो निकोरा चाँद आया
    व्योम पर अब डाल डेरा।।
    वाह ! अनुपम ! हर छंद लाजवाब है। गेयता ने रचना को और भी मधुर व मनमोहक बना दिया।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी आपकी कुशल लेखनी से निकले उद्गार मुझे अभिभूत कर गये ।
      सस्नेह आभार पुनः।

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  21. वाह ! सुंदर मधुरमय काव्य,आनंद आ गया।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा सी आपका आनंद हमारा उपहार है, प्रतिदान है रचना का ।
      सस्नेह।

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