Followers

Thursday 17 December 2020

कदाचार


 कदाचार


एक लालसा में लिपटा है

किसे बुलाता कर मंथन।

मोद झूठ है पल दो पल का 

देता तमस औ अचिंतन ।


जब जब चढ़ता नशा क्रोध का

आंखों में उफने लोहित 

बान समझ कर अकबक बकता 

विकराल काल ज्यों मोहित

करे धोंकनी सा धुक धुक फिर

बढ़ता उर में फिर स्पंदन।।


प्रवंचना का जाल बिछाकर

मनुज मनुज को ठगता है

छल प्रपंच का खोदा गड्ढा

रात दिवस फिर भगता है

कदाचार में आसक्त रहे

सदभावों का हुआ हनन।।


विषय मोह में उलझा प्राणी

पतन राह को गमन करे

समय रहते सँभल जो जाये

विनाश पथ का शमन करे

लोभ कपट अब व्यसन रोग से

मुक्ति युक्ति का कर चिंतन।।


       कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

36 comments:

  1. प्रवंचना का जाल बिछाकर

    मनुज मनुज को ठगता है

    छल प्रपंच का खोदा गड्ढा

    रात दिवस फिर भगता है

    कदाचार में आसक्त रहे

    सदभावों का हुआ हनन।।
    ..सारगर्भित तथ्यों को उजागर करती सशक्त रचना..।

    ReplyDelete
    Replies
    1. रचना में गहराई से उतर उसके भावों का मंथन कर आपने रचना को नया प्रवाह दिया।
      बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

      Delete
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 18 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      मुखरित मौन मेंं रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

      Delete
  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर ।

      Delete
  4. Replies
    1. उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर आभार आपका।

      Delete
  5. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

      Delete
  6. बहुत सुन्दर और विचारपूर्ण रचना, बधाई.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

      Delete
  7. मुग्ध करती सुन्दर रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी मैं अनुग्रहित हूं,रचना को नये आयाम मिले।
      सादर आभार आपका।

      Delete
  8. मानव जीवन को सचेत करती और जीवनानुपयोगी संदेश समेटे चिंतनपरक रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मीना जी आपकी व्याख्यात्मक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
      सस्नेह आभार आपका।

      Delete
  9. प्रवंचना का जाल बिछाकर
    मनुज मनुज को ठगता है
    छल प्रपंच का खोदा गड्ढा
    रात दिवस फिर भगता है
    कदाचार में आसक्त रहे
    सदभावों का हुआ हनन।।

    यथार्थपरक बहुत सुंदर रचना...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका रचना को गहनता से समझने के लिए , लेखन सफल हुआ ।
      सस्नेह।

      Delete
  10. हार्दिक अभिलाषा तो यही है कि केवल चिंतन ही नहीं अपितु वरण हो मुक्ति युक्ति । अति सुन्दर कथ्य ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सुंदर अभिलाषा भाव जब शुद्ध हो तो वरण सहज ही होने लगता है ।
      रचना के भावों पर विहंगम दृष्टि ने रचना को अर्थ दिया।
      सस्नेह आभार आपका।

      Delete
  11. बहुत ही सुंदर सीख देती रचना, हमेशा की तरह लाजबाव सृजन,सादर नमस्कार कुसुम जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया सदा लेखन में विश्वास बढ़ाती है ।
      सस्नेह।

      Delete
  12. प्रवंचना का जाल बिछाकर
    मनुज मनुज को ठगता है
    छल प्रपंच का खोदा गड्ढा
    रात दिवस फिर भगता है
    कदाचार में आसक्त रहे
    सदभावों का हुआ हनन।।
    बहुत सटीक सुन्दर एवं सार्थक
    लाजवाब सृजन
    वाह!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार सुधा जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया सदा मुझे नव उर्जा देती है।
      सस्नेह।

      Delete
  13. Replies
    1. बहुत आभार आपका आदरणीय उत्साह वर्धन के लिए।

      Delete
  14. विषय मोह में उलझा प्राणी
    पतन राह को गमन करे
    समय रहते सँभल जो जाये
    विनाश पथ का शमन करे

    सुन्दर रचना....

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुंदर सक्रियता के लिए ढेर सा आभार उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर।

      Delete
  15. बेहतरीन रचना
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार अपर्णा जी।

      Delete
  16. बेहतरीन रचना हेतु साधुवाद आदरणीया कुसुम जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।

      Delete
  17. जी मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
    चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
    सस्नेह

    ReplyDelete
  18. सुंदर संदेश देती रचना।

    ReplyDelete
  19. सार्थक चिंतन हमेशा अच्छे मार्ग को प्रेरित करता है ... सन्देश देती गहरी रचना ...

    ReplyDelete