डमरू घनाक्षरी
पनघट
पनघट घट भर, न टहल चल पड़।
चरण कमल धर, मटक कमर चल।।
ठहर कलश रख, दम भर कर पद।
भटक डगर मत, परख दरश खल।।
हलचल मत कर, मगर परण चख।
नयन वरण कर, भरकर रख जल।।
नशवर जन तन, भरम जगत सब
भजन अगर कर, सकल करम टल ।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
वाह! अद्भुत! कुसुम जी।
अद्भुत..अत्यन्त सुन्दर !!
क्या बात है ! बहुत सुंदर
वाह अद्भुत लेखन सखी।
सुन्दर घनाक्षरी।
वाह! अद्भुत! कुसुम जी।
ReplyDeleteअद्भुत..अत्यन्त सुन्दर !!
ReplyDeleteक्या बात है ! बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह अद्भुत लेखन सखी।
ReplyDeleteसुन्दर घनाक्षरी।
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