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Wednesday 13 November 2019

नौनिहाल

नौनिहाल कहाँ खो रहे हैं
कहाँ गया वो भोला बचपन
कभी किलकारियां गूंजा करती थी
और अब चुपचाप सा बचपन
पहले मासूम हुवा करता था
आज प्रतिस्पर्धा में डूबा बचपन
कहीं बङों की भीड़ में खोता
बड़ी-बड़ी सीख में उलझा बचपन
बिना खेले ही बीत रहा
आज के बच्चों का बचपन।

       कुसुम कोठारी ।

12 comments:

  1. ये भाव हमने जगाया है बच्चों में ...
    शायद जो हम न कर सके वो चाहते हैं बच्चे करें ... इसीलिए ...
    बाल दिवस पर एक सोच ... जो जरूरी है ...

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    1. जी सादर आभार नासवा जी आपने सही कहा ये सब हमारे कृत्यो की परछाई है।
      व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली। ढेर सा आभार।

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  2. सही कहा कुसुम दी कि आज के बच्चों का बचपन कहीं खो गया हैं। हम चाह कर भी उसे वापस नहीं ला सकते।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति बहन सुंदर सार्थक समर्थन देती प्रतिक्रिया के लिए ।
      सस्नेह।

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  3. आज प्रतिस्पर्धा में डूबा बचपन
    कहीं बङों की भीड़ में खोता
    बड़ी-बड़ी सीख में उलझा बचपन..
    बाल दिवस पर जागरूकता का संदेश देती अति सुन्दर रचना । प्रतिस्पर्धात्मक युग में बचपन खो गया है कहीं.., गहन चिन्तन ।

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी ।
      आपकी टिप्पणी सदा मन को गहरे सुकून से भर देती है साथ ही उर्जा प्रदान करती है।
      सस्नेह।

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  4. बहुत सुंदर और सार्थक सृजन 👌👌

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-11-2019 ) को "नौनिहाल कहाँ खो रहे हैं " (चर्चा अंक- 3520) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    -अनीता लागुरी 'अनु'

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    Replies
    1. बहुत सा आभार प्रिय अनु जी चर्चा मंच पर मेरी रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं अवश्य आऊंगी।
      सस्नेह आभार ।

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  6. रोये तो मोबाईल पकड़ा देते है या tv चला कर दे देते हैं, उम्र से पहले जवान कर देते हैं।
    4थी जमात से हम कॉम्पिटिशन का दबाव डाल देते हैं
    खेलने के लिए पिलंग से नीचे ना उतने देते...मिट्टी लग जायेगी, कपड़े गन्दे हो जाएंगे।
    हम ही इनको खेलों से दूर कर रहे हैं, बच्चपन के जंगलीपन से अवगत नहीं होने देते।
    और फिर हम ही कहते फिरते हैं खो गया बच्चपन।

    सटीक रचना।


    मेरी कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका 

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  7. सही कहा आपने रोहितास जी ये सब अभिभावकों का ही दायित्व है बच्चे तो कच्ची मिट्टी होते हैं ।
    सार्थक प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से आभार।

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