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Tuesday 17 September 2019

धुंआ-धुंआ ज़िंदगी

कहीं उजली,  कहीं स्याह अधेंरों की दुनिया ,
कहीं आंचल छोटा, कहीं मुफलिसी में दुनिया।

कहीं  दामन में चांद और  सितारे भरे हैं ,
कहीं ज़िन्दगी बदरंग धुँआ-धुआँ ढ़ल रही है ।

कहीं हैं लगे हर ओर रौनक़ों के रंगीन मेले
कहीं  मय्यसर नही  दिन  को भी  उजाले ।

कहीं ज़िन्दगी महकती खिलखिलाती है
कहीं टूटे ख्वाबों की चुभती किरचियां है ।

कहीं कोई चैन और सुकून से सो रहा  है,
कहीं कोई नींद से बिछुड़ कर रो रहा है।

कहीं खनकते सिक्कों की  खन-खन है,
कहीं कोई अपनी ही मैयत  को ढो रहा है ।

              कुसुम कोठारी।

23 comments:


  1. कहीं ज़िन्दगी महकती खिलखिलाती है
    कहीं टूटे ख्वाबों की चुभती किरचियां है । बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी त्वरित प्रतिक्रिया सदा मन में उत्साह का संचार करती है ।
      सस्नेह आभार।

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  2. वाह !
    कहीं जिंदगी बद रंग धुआँ-धुआँ ढल रही है।
    बहुत सुंदर
    दो रंग जीवन के होते है।

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    1. बहुत सा आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
      सस्नेह।

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  3. कहीं खनकते सिक्कों की खन-खन है,
    कहीं कोई अपनी ही मैयत को ढो रहा है।
    बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

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    1. ज्योति बहन ढेर सा प्यार और आभार आपकी उपस्थिति प्ररेणा का संचार करती है।
      सस्नेह आभार।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 18 सितंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी पांच लिंक में अपने को देखना सदा गौरव का विषय है ।
      सस्नेह आभार।

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  5. कहीं कोई चैन और सुकून से सो रहा है,
    कहीं कोई नींद से बिछुड़ कर रो रहा है।....भावपूर्ण चित्रण !

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला और लेखन को प्ररेणा।
      सस्नेह आभार।

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  6. हर छंद जीवन की हकीकत लिए ...
    हर बात गहरी, दर्शन से भरपूर ... मनन करने के लिए ...

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    1. जी आभार आपका आदरणीय नासवा जी रचना सार्थक हुई आपकी प्रतिक्रिया से।
      सादर ।

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  7. जीवन का सुंदर दर्शन

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  8. कहीं दामन में चांद और सितारे भरे हैं ,
    कहीं ज़िन्दगी बदरंग धुँआ-धुआँ ढ़ल रही है ।
    बेहतरीन और लाजवाब... बहुत सुन्दर कुसुम जी ।

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    1. ढेर सारा स्नेह आभार मीना जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया सदा लेखन की प्ररेणा बनता है ।
      सस्नेह।

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  9. जीवन की वास्तविकता को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करती भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया दीदी जी
    सादर नमन

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    1. बहुत बहुत स्नेह आभार प्रिय आंचल! आपकी प्यारी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।

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  10. सुख-दुःख, उतार-चढ़ाव, दारिद्र्य-वैभव, भुखमरी-बदहज़मी, थकन-आराम, महल-झोंपड़ी, नेता-मतदाता, मालिक-मज़दूर, न्याय-अन्याय, स्याह-सफ़ेद आदि अगर साथ-साथ न दिखें तो मज़ा नहीं आता.

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    1. मैं अभिभूत हूं सर आपकी असाधारण प्रतिक्रिया मेरे लिए मूल्य शान है।
      सादर आभार।

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  11. कहीं उजली, कहीं स्याह अधेंरों की दुनिया ,
    कहीं आंचल छोटा, कहीं मुफलिसी में दुनिया।
    कहीं दामन में चांद और सितारे भरे हैं ,
    कहीं ज़िन्दगी बदरंग धुँआ-धुआँ ढ़ल रही है ।
    जीवन के दोनों रंगों को बखूबी दर्शाती भावपूर्ण रचना प्रिय कुसुम बहन | सस्नेह --

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार रेणु बहन।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
      सस्नेह।

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