सुनहरी किरणों के घुंघरू
उषा ने सुरमई शैया से
अपने सिंदूरी पांव उतारे
पायल छनकी
बिखरे सुनहरी किरणों के घुंघरू
फैल गये अम्बर में
उस क्षोर से क्षितिज तक
मचल उठे धरा से मिलने
दौड़ चले आतुर हो
खेलते पत्तियों से
कुछ पल द्रुम दलों पर ठहरे
श्वेत ओस को
इंद्रधनुषी बाना पहना चले
नदियों की कल कल में
स्नान कर पानी में रंग घोलते
लाजवन्ती को होले से
छूते प्यार से
अरविंद में नव जीवन का
संदेश देते
कलियों फूलों में
लुभावने रंग भरते
हल्की बरसती झरनों की
फुहारों पर इंद्रधनुष रचते
छन्न से धरा का
आलिंगन करते,
जन जीवन को
नई हलचल देते
सारे विश्व पर अपनी
आभा छिटकाते
सुनहरी किरणों के घुंघरू।
कुसुम कोठारी।
बहुत उम्दा
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार लोकेश जी आपका उत्साह वर्धन के लिये ।
Deleteबहुत ही मनमोहक सृजन कुसुम जी 👌👌👌👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार मीना जी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया आपकी
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह ।
बहुत ही सुन्दर खूबसूरत मनभावनी रचना...
ReplyDeleteवाह!!!
ढेर सा आभार सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteबहुत सुन्दर दी जी
ReplyDeleteसादर
ढेर सा स्नेह बहना।
Deleteआभार सस्नेह ।
बहुत सुंदर शब्द चित्र..
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका प्रोत्साहन मिला ।
Deleteभोर का मनभावन चित्रण ...!
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका ।
Deleteब्लॉग पर स्वागत आपका सदा स्नेह बनाये रखें।
सस्नेह।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 3 अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आभार पम्मी जी
Deleteआप फेसबुक पर नही दिख रहे कहीं भी।
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबेड टी कुछ जल्दी मिल जाया करती तो हम भी उषा की नित्य-लीला का आनंद उठा पाते. अब तो हमारे पास इसका रसपान करने के लिए या तो जयशंकर प्रसाद की रचना - 'बीती विभावरी जाग री --' है या फिर कुसुम कोठारी की रचना - 'उषा ने सुरमई शैया से,
अपने सिंदूरी पांव उतारे --' है.
सादर आभार आदरणीय आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का कोई जवाब नही अतिशयोक्ति है फिर भी मनभावन।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर। सादर बधाई।
ReplyDeleteजी बहुत सा आभार ।
Deleteब्लॉग पर स्वागत है आपका ।
बेहतरीन रचना सखी 👌👌
ReplyDeleteस्नेह आभार सखी आपका ढेर सारा।
Deleteसुनहरी किरणों के घुँघरू ! वाह सुंदर प्रतिको और बिम्बों से सजी सुंदर रचना प्रिय कुसुम बहन | प्रकृतिवादी कवियों सी शैली !!!!!!! सस्नेह --
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