सीया एहतियात जो कोर कोरक्यूं कच्चे धागे सा उधड़ गया ।बहुत सुंदर सखी
सखी बहुत सा स्नेह आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
बहुत खूब
बहुत बहुत सा आभार आपका ।मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
वह सुबह का भटका कारवाँ सेअब तलक सभी से बिछड़ गया ।वाह !!!बहुत खूब ,सादर स्नेह सखी
कामिनी जी सस्नेह आभार ¡आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
वाह दी बेहतरीन रचना
बहुत ढेर सारा स्नेह। साभार सस्नेह ।
भटकने के बाद तय नहीं होता .... मिलन होगा या विछोह ...समय के वेग को कोई नहीं जान पाया और उसी आवेक की बानगी है ये रचना ... लाजवाब ...
सीया एहतियात जो कोर कोर
ReplyDeleteक्यूं कच्चे धागे सा उधड़ गया ।
बहुत सुंदर सखी
सखी बहुत सा स्नेह आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बहुत सा आभार आपका ।
Deleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
वह सुबह का भटका कारवाँ से
ReplyDeleteअब तलक सभी से बिछड़ गया ।
वाह !!!बहुत खूब ,सादर स्नेह सखी
कामिनी जी सस्नेह आभार ¡
Deleteआपकी मनभावन प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
वाह दी बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत ढेर सारा स्नेह।
Deleteसाभार सस्नेह ।
भटकने के बाद तय नहीं होता .... मिलन होगा या विछोह ...
ReplyDeleteसमय के वेग को कोई नहीं जान पाया और उसी आवेक की बानगी है ये रचना ... लाजवाब ...