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Tuesday, 5 March 2019

नशेमन इख़लास

नशेमन इख़लास

ना मंजिल ना आशियाना पाया
वो  यायावर सा  भटक गया ।

तिनका तिनका जोडा कितना
नशेमन इ़खलास का उजड़ गया ।

वह सुबह का भटका कारवाँ से
अब तलक सभी से बिछड़ गया ।

सीया एहतियात जो कोर कोर
क्यूं कच्चे धागे सा उधड़ गया ।

         कुसुम कोठारी।

9 comments:

  1. सीया एहतियात जो कोर कोर
    क्यूं कच्चे धागे सा उधड़ गया ।
    बहुत सुंदर सखी

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    1. सखी बहुत सा स्नेह आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।

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  2. Replies
    1. बहुत बहुत सा आभार आपका ।
      मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  3. वह सुबह का भटका कारवाँ से
    अब तलक सभी से बिछड़ गया ।

    वाह !!!बहुत खूब ,सादर स्नेह सखी

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    1. कामिनी जी सस्नेह आभार ¡
      आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।

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  4. वाह दी बेहतरीन रचना

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    1. बहुत ढेर सारा स्नेह।
      साभार सस्नेह ।

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  5. भटकने के बाद तय नहीं होता .... मिलन होगा या विछोह ...
    समय के वेग को कोई नहीं जान पाया और उसी आवेक की बानगी है ये रचना ... लाजवाब ...

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