तितली तेरे रंग
चहुँ ओर नव किसलय शोभित
बयार बसंती मन भाये,
देख धरा का गात चम्पई
उर में राग, मोह जगाये,
ओ मतवारी चित्रपतंगः
तुम कितनी मन भावन हो,
कैसा सुंदर रूप तुम्हारा
कैसे मन लुभावन हो,
वन माली करता जतन
रात दिन फूलों की रखवाली करता,
पर तुम कितनी चतुर सुजान
आंखों के काजल के जैसे
चुरा ले जाती सौरभ सुमनों से,
चहुँ ओर विलसत पराग दल
पर ओ रमती ललिता तुम,
थोड़ा-थोडा लेती हो
नही मानव सम लोभी तुम,
संतोष धन से पूरित हो
तित्तरी रानी फूलों सी सुंदर तुम
फिर भी फूल तुम्हें भरमाते
प्रकृति बदल बदल कर
सजती रूप हर मौसम,
पर तुम्हारा सुंदर गात
इंद्रधनुष के रंग सात,
मधुर पराग रसपान कर
उडती रहती पात पात।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बयार बसंती मन भाये
ReplyDeleteदेख धरा का गात चम्पई
उर में राग, मोह जगाये
बहुत ही सुन्दर मनभावनी रचना...
वाह!!!
बहुत बहुत आभार सुधा जी आपकी त्वरित मनभावन टिप्पणी से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteबहुत सुंदर...........कुसुम जी
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह आभार कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteआज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २३५० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...
ReplyDeleteतेरा, तेरह, अंधविश्वास और ब्लॉग-बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार शिवम जी ।
Deleteबहुत सुन्दर कुसुम जी ! आपकी कविता में तितली की उड़ान है, उसकी मुस्कान है, उसके रंग हैं और उसकी उमंग है.
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया से हर्ष हुआ ।आपकी सार्थक टिप्पणी का सदा इंतजार रहता है।
Deleteसादर।
वाह बहुत ही शानदार रचना सखी 👌👌
ReplyDeleteढेर सा स्नेह आभार सखी सदा सहयोग के लिए साभार स्नेह।
Deleteदेख धरा का गात चम्पई
Deleteउर में राग, मोह जगाये
ओ मतवारी चित्रपतंगः
तुम कितनी मन भावन हो ....,अप्रतिम सृजनात्मक है कुसुम जी आपकी लेखनी में...., मन खिल उठा इतनी सुन्दर रचना पढ़ कर ।
बहुत सा स्नेह आभार मीना जी आपकी इतनी मोहक सराहना से सच बहुत आनंद हुवा सदा स्नेह बनाये रखें
Deleteसस्नेह।
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteवाहह्हह...बेहद खूबसूरत सृजन दी..👌👌👌... शब्द..शब्द मधुमास है शब्द बसे अनुराग...रंग तुलिका यों झरे सखि गाये मन फाग..।
ReplyDeleteक्या बात श्वेता काव्यात्मक ऊर्जा लिये सुंदर शब्दावली रचना को गति देती हुई।
Deleteढेर सा आभार सस्नेह।
बहुत खूबसूरत रचना..भावानुसार शब्दों का बहुत सुंदर प्रयोग...
ReplyDeleteजी सादर आभार आदरणीय आपका प्रोत्साहित करने के लिए।
Deleteसादर।
बहुत ही सुन्दर रचना सखी
ReplyDeleteसादर
ढेर सा स्नेह आभार सखी।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteजी सादर आभार लोकेश जी ।
Deleteमनभावन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteसादर।
मनमोहक ... वासंतिक भाव
ReplyDeleteबहुत सा आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का ।
Deleteसस्नेह ।
बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ज्योति बहन ।
Deleteसस्नेह ।
अति उत्तम
ReplyDeleteढेर सा स्नेह आभार ज्योति जी ब्लॉग पर सदा इंतजार रहेगा आपका।
Deleteसस्नेह ।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१७-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २१ 'किसलय' (चर्चा अंक-३७०४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी