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Tuesday, 26 March 2019

आत्म बोध

आत्म बोध

      निलंबन हुवा निलाम्बर से
         भान हुवा अच्युतता का
                  कुछ क्षण
          गिरी वृक्ष चोटी ,इतराई
         फूलों पत्तों दूब पर देख
           अपनी शोभा मुस्काई ।

        गर्व से अपना रूप मनोहर
         आत्म प्रशंसा भर लाया
       सूर्य की किरण पडी सुनहरी
        अहा शोभा द्विगुणीत हुई !
        भाव अभिमान के थे अब
                   उर्धवमुखी।

                हा भूल गई " मैं "
          अब निश्चय है अंत पास में
   मैं तुषार बूंद नश्वर,भूली अपना रूप
         कभी आलंबन अंबर का
      कभी तृण सहारे सा अस्तित्व
        पर आश्रित नाशवान शरीर         
                        या
             "मैं "आत्मा अविनाशी
          भूल गई क्यों शुद्ध स्वरूप
                      अपना।

                कुसुम कोठारी।

20 comments:


  1. हा भूल गई " मैं "
    अब निश्चय है अंत पास में
    मैं तुषार बूंद नश्वर,भूली अपना रूप
    कभी आलंबन अंबर का
    कभी तृण सहारे सा अस्तित्व
    पर आश्रित नाशवान शरीर बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना सखी

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    1. ढेर सा आभार सखी आपकी त्वरित प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है।
      सस्नेह।

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  2. अद्भुत.. सुंदर शब्दों के अप्रतिम समन्वय से गूँथी आपकी रचना दी..बहुत अच्छी लगी।👌

    आत्मबोध परिचय स्वयं का स्वयं से
    आत्मज्ञान हो प्रभु में आत्म विलय से

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    1. स्नेह आभार श्वेता इतना दुलार बस रचना को गति मिली और मन को आनंद।
      बहुत सुंदर शब्दों के साथ आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया।

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  3. आपके आत्मबोध से प्रेरित भावना आदरणीया
    आभार सहित

    https://noopurbole.blogspot.com/2019/03/blog-post_27.html

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    1. नूपुर जी आपकी रचना की प्रतिक्रिया स्वरूप रचना मैने पढ़ी बहुत ही सुंदर और सार्थक है। ढेर सा आभार इतनी सुंदर प्रति रचना और प्रोत्साहन के लिये।

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  4. प्रकृति और आध्यात्म का सुन्दर समन्वय । बहुत सुन्दर रचना कुसुम जी ।

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    1. जी बहुत सा स्नेह आभार मीना जी ये रचना प्रतीकात्मक है यहाँ मानवीय करण है ओस की बूंद नाशवान है मावन देह जैसे पर आत्मा अविनाशी है अपने शाश्वत भाव को समझना पहला "मै"अंहकार और दूसरा मै आत्मा।
      सस्नेह आभार आपकी सार्थक प्रतिक्रिया स्वरूप रचना की व्याख्या का अवसर मिला।

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  5. बहुत सुन्दर दी
    सादर

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    1. बहुत सा स्नेह आभार बहना ।

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  6. "मैं "आत्मा अविनाशी
    भूल गई क्यों शुद्ध स्वरूप
    अपना। बहुत सुंदर .....

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  7. प्राकृति तो स्वयं ही आध्यात्म है ... निकार इश्वर स्वरुप ...
    सुन्दर काव्य इनके इर्द गिर्द बुना हुआ ...

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 28 मार्च 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  10. हा भूल गई " मैं "
    अब निश्चय है अंत पास में
    मैं तुषार बूंद नश्वर,भूली अपना रूप
    कभी आलंबन अंबर का
    कभी तृण सहारे सा अस्तित्व
    पर आश्रित नाशवान शरीर
    या
    "मैं "आत्मा अविनाशी
    भूल गई क्यों शुद्ध स्वरूप
    अपना।
    बहुत ही लाजवाब सृजन.....
    वाह!!!!

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  11. बेहतरीन लेखन हेतु शुभकामनाएं आदरणीय । शब्द हीन मैं और कुछ लिख भी नहीं सकता। भावशून्य मैं और कुछ कह भी नहीं सकता। अति सुन्दर ।

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  12. ओस की बूँद की तुलना अविनाशी आत्मा से.... जो परमात्मा से अलग होकर अपना शुद्ध स्वरूप भूल गई !!!
    अत्यंत सुंदर शब्द शिल्प के साथ गहन चिंतन दर्शाती हुई रचना।

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  13. वाह आदरणीया दीदी जी अद्भुत अप्रतीम सुंदर

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