आत्म बोध
निलंबन हुवा निलाम्बर से
भान हुवा अच्युतता का
कुछ क्षण
गिरी वृक्ष चोटी ,इतराई
फूलों पत्तों दूब पर देख
अपनी शोभा मुस्काई ।
गर्व से अपना रूप मनोहर
आत्म प्रशंसा भर लाया
सूर्य की किरण पडी सुनहरी
अहा शोभा द्विगुणीत हुई !
भाव अभिमान के थे अब
उर्धवमुखी।
हा भूल गई " मैं "
अब निश्चय है अंत पास में
मैं तुषार बूंद नश्वर,भूली अपना रूप
कभी आलंबन अंबर का
कभी तृण सहारे सा अस्तित्व
पर आश्रित नाशवान शरीर
या
"मैं "आत्मा अविनाशी
भूल गई क्यों शुद्ध स्वरूप
अपना।
कुसुम कोठारी।
निलंबन हुवा निलाम्बर से
भान हुवा अच्युतता का
कुछ क्षण
गिरी वृक्ष चोटी ,इतराई
फूलों पत्तों दूब पर देख
अपनी शोभा मुस्काई ।
गर्व से अपना रूप मनोहर
आत्म प्रशंसा भर लाया
सूर्य की किरण पडी सुनहरी
अहा शोभा द्विगुणीत हुई !
भाव अभिमान के थे अब
उर्धवमुखी।
हा भूल गई " मैं "
अब निश्चय है अंत पास में
मैं तुषार बूंद नश्वर,भूली अपना रूप
कभी आलंबन अंबर का
कभी तृण सहारे सा अस्तित्व
पर आश्रित नाशवान शरीर
या
"मैं "आत्मा अविनाशी
भूल गई क्यों शुद्ध स्वरूप
अपना।
कुसुम कोठारी।
ReplyDeleteहा भूल गई " मैं "
अब निश्चय है अंत पास में
मैं तुषार बूंद नश्वर,भूली अपना रूप
कभी आलंबन अंबर का
कभी तृण सहारे सा अस्तित्व
पर आश्रित नाशवान शरीर बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना सखी
ढेर सा आभार सखी आपकी त्वरित प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है।
Deleteसस्नेह।
अद्भुत.. सुंदर शब्दों के अप्रतिम समन्वय से गूँथी आपकी रचना दी..बहुत अच्छी लगी।👌
ReplyDeleteआत्मबोध परिचय स्वयं का स्वयं से
आत्मज्ञान हो प्रभु में आत्म विलय से
स्नेह आभार श्वेता इतना दुलार बस रचना को गति मिली और मन को आनंद।
Deleteबहुत सुंदर शब्दों के साथ आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया।
आपके आत्मबोध से प्रेरित भावना आदरणीया
ReplyDeleteआभार सहित
https://noopurbole.blogspot.com/2019/03/blog-post_27.html
नूपुर जी आपकी रचना की प्रतिक्रिया स्वरूप रचना मैने पढ़ी बहुत ही सुंदर और सार्थक है। ढेर सा आभार इतनी सुंदर प्रति रचना और प्रोत्साहन के लिये।
Deleteप्रकृति और आध्यात्म का सुन्दर समन्वय । बहुत सुन्दर रचना कुसुम जी ।
ReplyDeleteजी बहुत सा स्नेह आभार मीना जी ये रचना प्रतीकात्मक है यहाँ मानवीय करण है ओस की बूंद नाशवान है मावन देह जैसे पर आत्मा अविनाशी है अपने शाश्वत भाव को समझना पहला "मै"अंहकार और दूसरा मै आत्मा।
Deleteसस्नेह आभार आपकी सार्थक प्रतिक्रिया स्वरूप रचना की व्याख्या का अवसर मिला।
बहुत सुन्दर दी
ReplyDeleteसादर
बहुत सा स्नेह आभार बहना ।
Delete"मैं "आत्मा अविनाशी
ReplyDeleteभूल गई क्यों शुद्ध स्वरूप
अपना। बहुत सुंदर .....
प्राकृति तो स्वयं ही आध्यात्म है ... निकार इश्वर स्वरुप ...
ReplyDeleteसुन्दर काव्य इनके इर्द गिर्द बुना हुआ ...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 28 मार्च 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteहा भूल गई " मैं "
ReplyDeleteअब निश्चय है अंत पास में
मैं तुषार बूंद नश्वर,भूली अपना रूप
कभी आलंबन अंबर का
कभी तृण सहारे सा अस्तित्व
पर आश्रित नाशवान शरीर
या
"मैं "आत्मा अविनाशी
भूल गई क्यों शुद्ध स्वरूप
अपना।
बहुत ही लाजवाब सृजन.....
वाह!!!!
बेहतरीन लेखन हेतु शुभकामनाएं आदरणीय । शब्द हीन मैं और कुछ लिख भी नहीं सकता। भावशून्य मैं और कुछ कह भी नहीं सकता। अति सुन्दर ।
ReplyDeleteओस की बूँद की तुलना अविनाशी आत्मा से.... जो परमात्मा से अलग होकर अपना शुद्ध स्वरूप भूल गई !!!
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर शब्द शिल्प के साथ गहन चिंतन दर्शाती हुई रचना।
वाह आदरणीया दीदी जी अद्भुत अप्रतीम सुंदर
ReplyDeleteअति सुन्दर भाव
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