हार्दिक शुभकामनाएं
हां कतरा कतरा पिघली हूं मैं
फिर सांचे सांचे ढली हूं मैं
हां जर्रा जर्रा बिखरी हूं मैं
फिर बन तस्वीर संवरी हूं मैं
अपनो को देने खुशी
अपनो संग चली हूं मैं
अपना अस्तित्व भूल
सब का अस्तित्व बनी हूं मैं
कुछ हाथ आंधी से बचा रहे थे
तभी रोशन हो शमा सी जली हूं मैं
छूने को उंचाइयां
रुख संग हवाओं के बही हूं मैं।
कुसुम कोठारी।
हां कतरा कतरा पिघली हूं मैं
फिर सांचे सांचे ढली हूं मैं
हां जर्रा जर्रा बिखरी हूं मैं
फिर बन तस्वीर संवरी हूं मैं
अपनो को देने खुशी
अपनो संग चली हूं मैं
अपना अस्तित्व भूल
सब का अस्तित्व बनी हूं मैं
कुछ हाथ आंधी से बचा रहे थे
तभी रोशन हो शमा सी जली हूं मैं
छूने को उंचाइयां
रुख संग हवाओं के बही हूं मैं।
कुसुम कोठारी।
कुछ हाथ आंधी से बचा रहे थे
ReplyDeleteतभी रोशन हो शमा सी जली हूं मैं
बहुत ही लाजवाब एवं उत्कृष्ट सृजन...
वाह!!!
बहुत सा आभार प्रिय सखी।
Delete
ReplyDeleteहां कतरा कतरा पिघली हूं मैं
फिर सांचे सांचे ढली हूं मैं
हां जर्रा जर्रा बिखरी हूं मैं
फिर बन तस्वीर संवरी हूं मैं बहुत ही बेहतरीन रचना सखी
सस्नेह आभार प्रिय सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है।
Deleteकतरा कतरा सांचे में ढाल कर जो शब्द चित्र बनाया है वह लाजवाब व अत्यन्त सुन्दर है कुसुम जी ।
ReplyDeleteआपकी मन भावन प्रतिक्रिया से मन आह्लादित हुवा मीना जी ढेर सा स्नेह आभार ।
Deleteअति उत्तम
ReplyDeleteजी सस्नेह आभार ज्योति जी ।
Deleteशुभकामनाएं।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteढेर सा स्नेह सखी।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसस्नेह ।
बढिया प्रस्तुति।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
जी शुक्रिया आपके उत्साह वर्धन के लिये ।
Deleteअपना अस्तित्व भूल
ReplyDeleteसब का अस्तित्व बनी हूं मैं
कुछ हाथ आंधी से बचा रहे थे
तभी रोशन हो शमा सी जली हूं मैं
छूने को उंचाइयां
रुख संग हवाओं के बही हूं मैं।
सुन्दर पंक्तियाँ....
जी सादर आभार बहुत सा प्रोत्साहित करती सराहन के लिए ।
Deleteजिंदगी इसी को कहते हैं ...
ReplyDeleteखुद को मिटा कर जीवन की आशा जलानी होती है ... यही जीवन है ... अची राच्च्ना है बहुत ...
बहुत बहुत आभार नासवा जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteआपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 13 मार्च 2019 को साझा की गई है..
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in/
पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार पम्मी जी इस सम्मान के लिये ।
Deleteपांच लिंकों में आनि सदा सुखद अनुभूति है।
सस्नेह।
अपना अस्तित्व भूल
ReplyDeleteसब का अस्तित्व बनी हूं मैं.... वाह! बहुत सुंदर।
जी सादर आभार आपका प्रोत्साहन मिला ।
Deleteबेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुवा ।
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteहां जर्रा-जर्रा बिखरी हूं मैं, फिर बन तस्वीर संवरी हूं मैं! क्या बात है कुसुम जी। आपका बधाई । सादर।
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका प्रोत्साहित करने के लिए।
Deleteअपनो संग चली हूं मैं
ReplyDeleteअपना अस्तित्व भूल
सब का अस्तित्व बनी हूं मैं
बहुत खूब.... यही तो नारी जीवन है ,सादर स्नेह
बहुत बहुत आभार कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली
Deleteसस्नेह ।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (22-06-2020) को 'कैनवास में आज कुसुम कोठारी जी की रचनाएँ' (चर्चा अंक-3740) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हमारी विशेष प्रस्तुति 'कैनवास' में आपकी यह प्रस्तुति सम्मिलित की गई है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव
सुंदर प्रस्तुति।
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