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Sunday 8 April 2018

सप्तम सुर है सरगम मे

मौत की शै पे हर एक फना होता है,
जज्बातो की ठोकर मे क्यों
 फिर रुसवा होता हैं,
इंसा है नसीब का पायेंगे ही,
बस इस  बात से क्यों अंजा होता है,
ख्वाब देखो कुछ बुरा नही
पर हर ख्वाब पुरा हो यही मत देखो
सब की किस्मत एक नही होती
एक ही गुलिस्ता के हर फूल का
 अंजाम अलग होता है
एक कली सेहरे मे गूंथती
एक मयत पर सजती है
एक फूल चढता श्रद्धा से
दूजा बाजारों में रौदा जाता है
एक बने गमले की शोभा
एक कचरे मे फैंका जाता है
कुछ तो कुछ भी नही सहते
पर डाली पर मुरझा जाते है
बस जीने का एक बहाना
 ढूंढलो कोई अच्छा सा
एक ढूंढोगे लाख मिलेगे
सप्तम सुर है सरगम मे
...........कुसुम कोठारी

4 comments:

  1. वाह दीदी क्या ज्ञान वर्धक पंक्तिया दी हैं आपने
    बेहद सुंदर अनमोल रचना
    बंद था एक दरवाजा
    पर कई और खुले थे
    ना था हमे अंदाज़ा पर
    सदा मेरे भाग जगे थे

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  2. स्नेह आभार आंचल आपको ब्लाग पर सटिप्पणी देख बहुत खुशी हुई

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