तीन क्षणिकाएं।
1 कीचड़ से बीन कमल हम लाते हैं
पंक मे रह के भी पंकज से मुस्कुरातये हैं ।।
2 ओ नाव के अकेले मुसाफिर
तूं क्यों है फिक्र मे राहगीर
तूं कहां तन्हा चल रहा है
तेरे संग सारा दरिया चल रहा है।।
3 ओ पथिक सुपथ के, लिये तेज पुंज हाथ चला
रौशन कर दे हर तिमिर पथ,ऐसा ले विश्वास चला।।
कुसुम कोठारी।
बहुत बहुत खूब
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