Followers

Monday, 16 April 2018

मेरा डर

आजकल डर के कारण
सांसे कुछ कम ले रही  हूं
अगली पीढ़ी के लिये
कुछ प्राण वायु छोड़ जाऊं,
डरती हूं क्या रहेगा
उनके हिस्से
बिमार वातावरण
पानी की कमी
दूषित खाद्य पदार्थ
डरा भविष्य
चिंतित वर्तमान
जीने की जद्दोजहद
झूठ, फरेब
बेरौनक जिंदगी
स्वार्थ
अविश्वास
धोखा फरेब
अनिश्चित जीवन
वैर वैमनस्य
फिर  से दिखता
आदम युग
यह भयावह
चिंतन मुझे डराता है
सोचती हूं अभीसे
पानी की
एक एक बूंद का
हिसाब रखूं
कुछ तो सहेजू
उनके लिये
कुछ अच्छे संस्कार
दया कोमल भाव
सहिष्णुता
मजबूत नींव
धैर्य आदर्श
कि वो अपने
पूर्वजों को कुछ
आदर से याद करें
चैन से जी सके
और अपनी अगली पीढ़ी को
 कुछ अच्छा देने की सोचें....
             कुसुम कोठारी।

5 comments:

  1. बहुत खूबसूरत चिंतन कुसुम जी.
    आज की परिस्थितियों को देखते हुए जरूरी है और लाजमी भी है यह डर.
    बहुत बहुत शुभकामनाएं. 👏

    ReplyDelete
  2. जी सुधा जी समर्थन के लिए शुक्रिया।
    शुभ संध्या।

    ReplyDelete
  3. वाह सुंदर
    आपकी रचना ने तो हमे भी डरा दिया
    सोते वर्तमान को भविष्य की चिंता कराती अद्भुत रचना 👌

    ReplyDelete