राहें ना कारवाँ है
दूर मंजिल के निशाँ है।
ना जाने कैसे होगा जाना
पर इन कदमों को है
मंजिल पाना,
साथ हौसला है बस
न जाने कहां होगा
रात का बसेरा
क्या होगा उस अन्जान
जगह का फसाना
मन है उहापोह मे फसा
जाना तो होगा ।
बैठ के रहने वालो को
कब मिलते हैं मुकाम
कब तक बैठ किनारों पर
लहरें गिनता रहेगा ।
पार जो जाना है
कश्ती करनी होगी
तूफानों के हवाले
चल उठा कदम
कारवाँ भी बनेगा
मिलेगी मंजिल भी
राहें बनेगी खुद रहनुमा
हम सफर हम कदम।
कुसुम कोठारी।
दूर मंजिल के निशाँ है।
ना जाने कैसे होगा जाना
पर इन कदमों को है
मंजिल पाना,
साथ हौसला है बस
न जाने कहां होगा
रात का बसेरा
क्या होगा उस अन्जान
जगह का फसाना
मन है उहापोह मे फसा
जाना तो होगा ।
बैठ के रहने वालो को
कब मिलते हैं मुकाम
कब तक बैठ किनारों पर
लहरें गिनता रहेगा ।
पार जो जाना है
कश्ती करनी होगी
तूफानों के हवाले
चल उठा कदम
कारवाँ भी बनेगा
मिलेगी मंजिल भी
राहें बनेगी खुद रहनुमा
हम सफर हम कदम।
कुसुम कोठारी।
बहुत सार्थक रचना।
ReplyDeleteथक के रुकनेवालों को मंजिल नहीं मिलती
बहुत ही प्रेरणादायक लिखा आप ने। सुन्दर !!!
नीतू जी आपकी त्वरित प्रतिक्रिया सदा उत्साहित करती है।
ReplyDeleteस्नेह आभार सखी।
वाहह...क्या बात है दी..हमेशा की तरह बहुत सुंदर,प्रेरक और संदेशात्मक रचना दी..👌👌👌
ReplyDeleteस्नेह आभार श्वेता
ReplyDeleteWah bahut khoob di .बैठ के रहने वालो को
ReplyDeleteकब मिलते हैं मुकाम kya bat kahi hai
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २३ अप्रैल २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह!!कुसुम जी ,बहुत खूबसूरत रचना ।
ReplyDeleteवाह दीदी जी बेहद उम्दा
ReplyDeleteसकारात्मक जोश जज़्बा हौसला बढ़ाती लाजवाब सुंदर रचना 👌👌
बैठ के रहने वालों को
ReplyDeleteकब मिलते हैं मुकाम....
वाह!!!
राहें बनेगी खुद रहनुमा
बहुत सुन्दर, प्रेरक एवं लाजवाब रचना....
कश्ती करनी होगी
ReplyDeleteतूफानों के हवाले
चल उठा कदम
कारवाँ भी बनेगा
मिलेगी मंजिल भी
राहें बनेगी खुद रहनुमा
हम सफर हम कदम।
बहुत ही सुंदर प्रेरित करने वाली रचना 🙏
बेमिसाल अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहतरीन रचना कुसुम जी
ReplyDeleteसभी को बहुत सा आभार।
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