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Wednesday, 11 April 2018

एक छोटी सी खुशी

एक छोटी खुशी अंतर को छूले
तो कविता बनती है
आज एक झंकार सी हुई
रूकी पायल छनक उठी
एक हल्की सी आहट
दस्तक दे रही दिल के दरवाजे पर
कैसी रागिनी बज उठी
मानो कान्हा की बंसी गूंज उठी
सब कुछ नया सा लगता है
सभी रिश्तो मे ताजगी सी लगती है
समय की गति मध्यम हो जाती है
होटों पर  गीत और
पांव मे थिरकन समा जाती है
एक छोटी सी खुशी भी
कविता बन जाती है।
        कुसुम कोठारी।

7 comments:

  1. बहुत सुंदर बात कही आपने वाकई एक छोटी सी खुशी भी कविता बन जाती है
    बेहद सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आंचल जी ब्लॉग पर उपस्थित और भी आनंद दायी लगी और स्नेह भरी प्रतिक्रिया मनभावन।

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  2. सुन्दर भाव मीता

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    1. स्नेह आभार मीता ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति और भी उत्साहित करती है

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  3. वाह!!! बहुत खूब ... नमन आप की लेखनी को।

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    1. आपकी स्नेह प्रतिक्रिया के लिये सादर आभार नीतू जी

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  4. सादर आभार लोकेश जी।

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