ये वादियां ये नजारे, देखो घिर आई घटायें भी
पहाड़ो की नीलाभ चोटियों पर झुकने लगा आसमां भी।
झील का शांत जल बुला रहा,कुदरत मुस्कान बिखेर रही
ये लुभावनी घूमती घाटियां हरित रंग रंगी धरा भी।
किसी कोने से झांक रही सुनहरी सूर्य किरण
हरी दूब पर इठलाती लजीली धूप की लाली भी ।
छेड़ी राग मधुर, मस्त, सुरभित हवाऔं ने
प्रकृति के रंग रंगा देखो आज मन आंगन भी।
कुसुम कोठारी ।
पहाड़ो की नीलाभ चोटियों पर झुकने लगा आसमां भी।
झील का शांत जल बुला रहा,कुदरत मुस्कान बिखेर रही
ये लुभावनी घूमती घाटियां हरित रंग रंगी धरा भी।
किसी कोने से झांक रही सुनहरी सूर्य किरण
हरी दूब पर इठलाती लजीली धूप की लाली भी ।
छेड़ी राग मधुर, मस्त, सुरभित हवाऔं ने
प्रकृति के रंग रंगा देखो आज मन आंगन भी।
कुसुम कोठारी ।
वाह...बहुत खूबसूरत रचना. प्रकृति का मनोहारी वर्णन
ReplyDeleteसादर आभार सुधा जी।
ReplyDeleteकोठारी जी !! अति सुंदर' मनमोहक रचना.
ReplyDeleteसादर आभार।
Deleteप्राकृति के सुंदर रंगों का आगमन मन का आँगन भी महका जाता है ... बहुत सुंदर छंदों से बनी लाजवाब रचना है ...
ReplyDeleteसादर आभार सार्थक प्रतिक्रिया के लिये ।
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