Followers

Friday 13 April 2018

एक यवनिका गिरने को है

एक यवनिका गिरने को है।
जो सोने सा दिख रहा वो
अब माटी का ढेर होने को है
लम्बे सफर पर चल पङा
नींद गहरी सोने को है।
एक यवनिका .....।.
जो समझा था सरुप अपना
वो सरुप अब खोने को है
अब जल्दी से उस घर जाना
जहाँ देह नही सिर्फ़ रूह है
एक यवनिका ....
डाल डाल जो फूदक रहा
वो पंक्षी कितना भोला है 
घात लगाये बैठा बहेलिया
किसी पल बिंध जाना है ।
एक यवनिका .....
जो था खोया रंगरलियों मे
राग मोह मे फसा हुवा
मेरा मेरा कर जो मोहपास मे बंधा हुवा
आज अपनो के हाथों भस्म अग्नि मे होने को है ।
एक यवनिका  ......
           कुसुम कोठारी ।

17 comments:

  1. वाह !!!बहुत सार्थक रचना। लाजवाब भाव।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सखी आपका समर्थन मिल गया रचना सार्थक हुई।

      Delete
  2. वाह वाह मीता ....मौत यवनिका का अनूठा संगम लिखा अति अति आभार समय रहते सिखा रही हो अब तो मनवा जाग !

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सा आभार मीता रचना से सीख लेना भी आपकी एक विशिष्ट कला है नमन।

      Delete
  3. एक यवनिका गिरने को है।
    जो सोने सा दिख रहा वो
    अब माटी का ढेर होने को है
    लम्बे सफर पर चल पङा
    नींद गहरी सोने को है।
    एक यवनिका .....।.

    मेरा मेरा के भ्रमजाल में मुदित यात्रि को सचेत करती प्रेरक रचना। वाह वाह रचना। सुंदरतम दी जी। बहुत ही सुंदर थीम से सजा सार्थक रचनाओं से परिपूर्ण आपका ब्लॉग देखकर अत्यंत प्रसन्नता हुई। बहुत बहुत बधाइयाँ आपको। आपका ब्लॉग ख़ूब यश कमाये ऐसी शुभाकांक्षा है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्नेह आभार भाई आपको इतने आरसे बाद वो भी ब्लॉग फर ईतनी ढेर सी शुभकामनाओं के साथ देख मन प्रमुदित हुवा।
      रचना को विवेचनात्मक समर्थन देती सुंदर सार्थक पंक्तियाँ पुनः स्नेह आभार।

      Delete
  4. Replies
    1. लोकेश जी बहुत सा आभार।

      Delete
  5. वाह अद्भुत अप्रतिम सुंदर रचना
    हर मोह के धागे
    अब खुलने को है
    इस माया के पिंजरे से
    मुक्त होने को है
    परम रूह से मिलन
    अद्भुत अब होने को है
    एक परिंदा उड़ने को है
    एक यवनिका गिरने को है
    छू गयी आपकी रचना दीदी जी
    वाह उम्दा 👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह अद्भुत अपरिमित भावों का सुंदर काव्य मेरी रचना को समर्थन देता उसे आगे बढाता।
      स्नेह आभार।

      जैसे रंगमंच पर नाटक खत्म होने को हो तो पर्दा गिरने की क्रिया होती है, यानि पट्टाक्षेप या यवनिका का गिरना ठीक वैसे ही संसार रूपी रंगमंच पर जीवन रूपी नाट्य का पट्टाक्षेप हो तो ऐसा ही भान होता है या ये कहो कि ये शाश्वत है यवनिका गिरने वाली होती है तो हर चर प्राणी के लिये एक नियम सा है।
      स्नेह भरा आभार।

      Delete
  6. अति सुन्दर ....,

    ReplyDelete
    Replies
    1. मीना जी सादर आभार आपका। मेरे ब्लॉग पर आपको सप्रक्रिया के साथ देखना सुखद अनुभूति ।

      Delete
  7. जी सादर आभार मेरी रचना के लिये यह गर्व का पल है। मै मित्र मंडली पर जरूर आऊंगी।
    पुनः आभार।

    ReplyDelete
  8. रंगमच के बहाने जीवन की नश्वरता को शब्दों में पिरोती रचना बाहुत खूब है | सचमुच रंगमंच सरीखा ही है जीबन | दृश्य कब पलट जाए पता नहीं चलता | सस्नेह

    ReplyDelete
  9. मेरा मेरा कर जो मोहपास मे बंधा हुवा
    आज अपनो के हाथों भस्म अग्नि मे होने को है

    जीवन की यही सच्चाई हैं ,बहुत ही गहरे भाव लिए अद्भुत रचना ,सादर नमन कुसुम जी

    ReplyDelete
  10. एक यवनिका गिरने को है।
    जो सोने सा दिख रहा वो
    अब माटी का ढेर होने को है
    लम्बे सफर पर चल पङा
    नींद गहरी सोने को है।
    एक यवनिका .....।.
    जो समझा था सरुप अपना
    वो सरुप अब खोने को है
    अब जल्दी से उस घर जाना
    जहाँ देह नही सिर्फ़ रूह है
    एक यवनिका ..... वाह !वाह !बेहतरीन सृजन दी
    सादर

    ReplyDelete
  11. बहुत सुंदर प्रस्तुति सखी।लाजवाब।

    ReplyDelete