रो रो के सुनाते रहोगे दास्ताने गम
भला कोई कब तक सुनेगा
देते रहोगे दुहाई उजडी जिंदगी की
भला कोई कब तक सुनेगा
आशियाना तुम्हारा ही तो बिखरा ना होगा
भला कोई कब तक सुनेगा
गम से कोई जुदा कंहा जमाने मे
भला कोई कब तक सुनेगा
अदम है आदमी बिन अत़्फ के
भला कोई कब तक सुनेगा
अफ़सुर्दा रहते हो अजा़ब लिये
भला कोई कब तक सुनेगा
आब ए आइना ही धुंधला इल्लत किसे
भला कोई कब तक सुनेगा
गम़ख्वार कौन गैहान मे आकिल है चुप्पी
भला कोई कब तक सुनेगा
कुसुम कोठारी।।
अदम =अस्तित्व हीन, अत़्फ =दया
अफ़सुर्दा =उदास ,इल्लत =दोष
गैहान=जमाना, आकिल =बुद्धिमानी
भला कोई कब तक सुनेगा
देते रहोगे दुहाई उजडी जिंदगी की
भला कोई कब तक सुनेगा
आशियाना तुम्हारा ही तो बिखरा ना होगा
भला कोई कब तक सुनेगा
गम से कोई जुदा कंहा जमाने मे
भला कोई कब तक सुनेगा
अदम है आदमी बिन अत़्फ के
भला कोई कब तक सुनेगा
अफ़सुर्दा रहते हो अजा़ब लिये
भला कोई कब तक सुनेगा
आब ए आइना ही धुंधला इल्लत किसे
भला कोई कब तक सुनेगा
गम़ख्वार कौन गैहान मे आकिल है चुप्पी
भला कोई कब तक सुनेगा
कुसुम कोठारी।।
अदम =अस्तित्व हीन, अत़्फ =दया
अफ़सुर्दा =उदास ,इल्लत =दोष
गैहान=जमाना, आकिल =बुद्धिमानी
👌👌👌👌👌
ReplyDeleteनये रंग मैं रंग रही कलम चले पुरजोर
मेरे मन को भा गई तेरी सीख अनमोल
रोने वालों को ना पूछे
ना पूछें कोई हाल
मुस्कुरा कर जंग मैं
रहिये बस श्री मान !
स्नेह आभार मीता ।
Deleteबहुत सुन्दर रचना ... 👌👌👌
ReplyDeleteकुछ बदला बदला अंदाज अच्छा लगा
स्नेह आभार सखी।
Deleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ३० अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
सादर आभार मेरी रचना को लोकतंत्र संवाद मे जगह देकर रचना को सम्मानित किया।
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