बन रे मन तू चंदन वन
सौरभ का बन अंश-अंश।
कण-कण में सुगंध उसके
हवा-हवा महक जिसके
चढ़ भाल सजा नारायण के
पोर -पोर शीतल बनके।
बन रे मन तू चंदन वन।
भाव रहे निर्लिप्त सदा
मन में वास नीलकंठ
नागपाश में हो जकड़े
सुवास रहे सदा आकंठ।
बन रे मन तू चंदन वन ।
मौसम ले जाय पात यदा
रूप भी ना चितचोर सदा
पर तन की सुरभित आर्द्रता
रहे पीयूष बन साथ सदा।
बन रे मन तू चंदन वन ।
घिस-घिस खुशबू बन लहकूं
ताप संताप हरूं हर जन का
जलकर भी ऐसा महकूं,कहे
लो काठ जला है चंदन का।
बन रे मन तू चंदन वन ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सौरभ का बन अंश-अंश।
कण-कण में सुगंध उसके
हवा-हवा महक जिसके
चढ़ भाल सजा नारायण के
पोर -पोर शीतल बनके।
बन रे मन तू चंदन वन।
भाव रहे निर्लिप्त सदा
मन में वास नीलकंठ
नागपाश में हो जकड़े
सुवास रहे सदा आकंठ।
बन रे मन तू चंदन वन ।
मौसम ले जाय पात यदा
रूप भी ना चितचोर सदा
पर तन की सुरभित आर्द्रता
रहे पीयूष बन साथ सदा।
बन रे मन तू चंदन वन ।
घिस-घिस खुशबू बन लहकूं
ताप संताप हरूं हर जन का
जलकर भी ऐसा महकूं,कहे
लो काठ जला है चंदन का।
बन रे मन तू चंदन वन ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 09 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका यशोदा जी।
Deleteमुखरित मौन पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
सादर।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-06-2020) को "वक़्त बदलेगा" (चर्चा अंक-3728) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय, चर्चा मंच पर रचना को देखना सदा सुखद अनुभव है, मैं उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर।
बन रे मन तू चंदन वन ।
ReplyDelete-अति सुन्दर भाव !
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीया।
Deleteआपकी सशक्त लेखनी से समर्थन पाकर रचना सार्थक हुई।
सदा ब्लाग पर आपकी उपस्थिति की प्रतिक्षा रहेगी ।
सादर।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteताप संताप हरूं हर जन का शुभ भावना बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteवाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteवाह !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय दी.
बन रे मन तू चंदन वन.अप्रतिम...
बहुत बहुत आभार सस्नेह ,आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteवाह कुसुम जी क्या खूब लिखा है आपने...कि
ReplyDeleteमौसम ले जाय पात यदा
रूप भी ना चितचोर सदा
पर तन की सुरभित आर्द्रता
रहे पीयूष बन साथ सदा। मन की इस अवस्था को शब्दों में उकेरने के लिए धन्यवाद
मैं अभिभूत हूं,अलकनंदा जी, आपकी मोहक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ और लेखनी का उत्साहवर्धन।
Deleteसादर।
बेहद सुंदर
ReplyDeleteमन चन्दन हो जाए ... शीतल हो जाए तो आत्म सुख की प्राप्ति है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण गीत ...
अति मनमोहक गीत दी।
ReplyDeleteशब्द संयोजन लय प्रवाह बहुत सुंदर है।
सादर।