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Tuesday, 23 June 2020

घुमड़ती घटाएं

घुमड़ती घटाएं

नभ पर उमड़ी है घनमाला
कठ काली कजलोटी।
बरस रही है नभ से देखो 
बूंदें छोटी छोटी।

कभी उजाला कभी अँधेरा
नभ पर आँख मिचौली।
घटा डोलची लिए हवाएं
जैसे हो हमजोली।
सूरज कंबल ओढ़े दिखता
पोढ़ तवे की रोटी‌‌।।

दूब करे अवगाहन हर्षे
छुई-मुई सी सिमटी।
पात पात से मोती झरते
लता विटप से लिपटी।
मखमल जैसी वीरबहूटी
चौसर सजती गोटी।।

टप टप का संगीत गूंजता
सरि के जल में कल कल।
पाहन करते  स्नान देख लो
अपनी काया मल मल।
श्यामल बदरी मटक रही है
चढ़ पर्वत की चोटी।।

कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।

21 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-06-2020) को "चर्चा मंच आपकी सृजनशीलता"  (चर्चा अंक-3742)    पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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    1. सादर आभार आदरणीय।
      चर्चा मंच पर आना सदा प्रशंसा देता है।

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  2. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 25 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका। पांच लिंक पर रचना का चयन सदा सम्माननीय होता है ।

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  3. दूब करे अवगाहन हर्षे
    छुई-मुई सी सिमटी।
    पात पात से मोती झरते
    लता विटप से लिपटी।
    मखमल जैसी वीरबहूटी
    चौसर सजती गोटी।। खूबसूरत रचना सखी 👌

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  4. टप टप का संगीत गूंजता
    सरि के जल में कल कल।
    पाहन करते स्नान देख लो
    अपनी काया मल मल।
    श्यामल बदरी मटक रही है
    चढ़ पर्वत की चोटी।।
    बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति बहन ।

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  5. वर्षा का इतना सुंदर वर्णन अपने आप में अप्रतिम है, जितनी प्रशंसा की जाए, कम है

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।

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  6. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका विश्वमोहन जी।
      उत्साहवर्धन हुआ।

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  7. वर्षा ऋतु का अद्भुत वर्णन लाजवाब सृजन कुसुम जी ।

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  8. बहुत ही सुंदर मेघगीत, अद्भुत सृजन कुसुम जी ,सादर नमन

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    1. बहुत आभार आपका कामिनी जी ।
      सस्नेह।

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  9. सुन्दर प्राकृतिक वर्णन, साधुवाद

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    1. बहुत आभार आपका आदरणीय उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
      सादर ।

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  10. सूरज कंबल ओढ़े दिखता
    पोढ़ तवे की रोटी‌‌।।
    ओह ,... कितना सुंदर चित्रण , सूरज कंबल ओढ़े। .वाह अद्भुत
    श्यामल बदरी मटक रही है
    चढ़ पर्वत की चोटी।।
    आपकी लेखनी बस मोह लेती है , इक मुस्कान उभरती रहती हैं रचना पढ़ते पढ़ते
    बहुत मोहक रचना
    सदर नमन

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  11. वाह ज़ोया जी मुग्ध कर देती है आपकी प्रतिक्रिया!सदा इंतजार रहता है आपकी मोहक टिप्पणी का जो कि हर रचना को विशिष्ट बना देती है,आपका अंदाज निराला है ।
    सस्नेह ।

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