अरूणाभा
अलसाई सी भोर जागती
पाखी का कलरव फूटा।
अरुणाचल में लाली चमकी
रक्तिम रस मटका टूटा।
झर झर झरता सार धरा पर
पात द्रुम पर सनसनाए ।
आभा मंडित स्वर्ण ओढनी
फूल डाली झिलमिलाए।
प्रभात रागिनी गुनगुनाती
शाख से निशिगंध छूटा ।।
सैकत कणिका पोढ़ तटों पर
ज्यों अवि सेके कनक सुता
तिमिर विदा ले यामिनी संग
किधर सोया क्षीण तनुता।
आदित्य की अनुपम छटा में
शर्वरी का मान खूटा ।।
पौध पहन केसरिया पगड़ी
ओस बूंद मोती भरते।
ताल फूलती कोमल कलियां
मधुप भी अभिसार करते ।
पेड़ों पर तरुणाई झलके
निखर गया उपवन बूटा।।
कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"
अलसाई सी भोर जागती
पाखी का कलरव फूटा।
अरुणाचल में लाली चमकी
रक्तिम रस मटका टूटा।
झर झर झरता सार धरा पर
पात द्रुम पर सनसनाए ।
आभा मंडित स्वर्ण ओढनी
फूल डाली झिलमिलाए।
प्रभात रागिनी गुनगुनाती
शाख से निशिगंध छूटा ।।
सैकत कणिका पोढ़ तटों पर
ज्यों अवि सेके कनक सुता
तिमिर विदा ले यामिनी संग
किधर सोया क्षीण तनुता।
आदित्य की अनुपम छटा में
शर्वरी का मान खूटा ।।
पौध पहन केसरिया पगड़ी
ओस बूंद मोती भरते।
ताल फूलती कोमल कलियां
मधुप भी अभिसार करते ।
पेड़ों पर तरुणाई झलके
निखर गया उपवन बूटा।।
कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 04 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नवगीत।
ReplyDeleteसुंदर बिम्बो से सजी सरस रचना।
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ReplyDeleteपौध पहन केसरिया पगड़ी
ओस बूंद मोती भरते।
ताल फूलती कोमल कलियां
मधुप भी अभिसार करते ।
पेड़ों पर तरुणाई झलके
निखर गया उपवन बूटा।।
वाह!!!
अद्भुत बिम्ब... उत्कृष्ट एवं लाजवाब नवगीत।
बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।
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