चाँद रोया रातभर
शबनमी अश्क बहाए,
फूलों का दिल चाक हुवा
खुल के खिल न पाए।।
छुपाते रहे उन अश्को को
अपनी ही पंखुरियों तले ,
धूप ने फिर साजिश रची
उन को समेटा उठा हौले ।।
फिर अभिमान से इतराई बोली
यूं ही दम तोडता थककर दर्द।
और छुप जाता न जाने कहां
जाकर हौले हौले किसी गर्द।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बहुत ही सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteचाँद का दर्द ... कवि की कल्पना का वोस्तार ...
वाह सुन्दर कविता
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ReplyDeleteछुपाते रहे उन अश्को को
अपनी ही पंखुरियों तले ,
धूप ने फिर साजिश रची
उन को समेटा उठा हौले ।।
खूबसूरत कविता ,आपका तहे दिल से शुक्रियां प्यारी सी टिप्पणी के लिए ,आपकी टिप्पणी चेहरे पर हंसी बिखेर गई,बहुत खूब कहा ,
नाज़ुक खूबसूरत भावों से सजी सुंदर अभिव्यक्ति अपना मर्म तलाशती हुई.
ReplyDeleteचाँद रोया रातभर
शबनमी अश्क बहाए,
फूलों का दिल चाक हुवा
खुल के खिल न पाए।।..वाह !
ग़म चाँद का कोई समझ न पाता
ReplyDeleteचटख चाँदनी से भ्रमित रात मुस्कुराता
खिलखिलाते तारों के बीच तन्हा चाँद
मौन सिसकता किसे अपनी व्यथा सुनता
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प्रकृति पर आपकी लिखी आपकी रचनाएँ सदैव अति सुंदर होती है दी।
अप्रतिम रचना।
बहुत सुंदर रचना सखी
ReplyDeleteनये बिम्बों के साथ, बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुन्दर कविता कोमल भाव ..
ReplyDeleteओह ये रचना कपड़ने से कैसे चूक गयी मैं , आज अचनाक ही नज़र गयी सिडेबार में , चाँद का गम , तो ख्याल आया ये तो नहीं पढ़ी
ReplyDeleteचाँद की ही तरह सुंदर रचना