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Saturday, 13 June 2020

जीवन रण

समय बस बीता जाता ।

दुख सुख क्रीड़ा  समदृश्य
क्षण से छोटा नव,
पल में अतीत बन जाता ।
समय बस बीता जाता ।
ओस बिंदु सा फिसला पल में,
जीवन "रण "में डाल निरन्तर,
खुद कहीं छुप जाता ।
समय बस बीता जाता ।
जगती तल का कोई
योद्धा इसे रोक न पाता ।
समय बस बीता जाता ।
फिर क्यों ना जी लें,
मन गान गाता
समय बस बीता जाता ।
जो भी मिल रही नियामत
उसे बनालो हृदय गाथा ।
समय बस बीता जाता ।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

6 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१४- 0६-२०२०) को शब्द-सृजन- २५ 'रण ' (चर्चा अंक-३७३२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  2. क्षण से छोटा नव,
    पल में अतीत बन जाता ।
    समय बस बीता जाता ।
    ओस बिंदु सा फिसला पल में,
    जीवन "रण "में डाल निरन्तर,
    खुद कहीं छुप जाता ।
    वाह!!!!
    बहुत सुन्दर सटीक लाजवाब सृजन।

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  3. समय के माहात्म्य को शब्दों में समेटती सुंदर अभिव्यक्ति।

    सादर नमन आदरणीया दीदी।

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  4. समय की अपनी गति है और जैसा हो, जो भी हो कट जाता है ... गुज़र जाता है ...
    सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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