जीवन क्षणभंगुर!
कुण्डलिया छंद।
जीवन जल की बूंद है,क्षण में जाए छूट।
यहां सिर्फ काया रहे , प्राण तार की टूट।
प्राण तार की टूट, धरा सब कुछ रह जाता।
जाए खाली हाथ ,बँधी मुठ्ठी तू आता।
कहे कुसुम ये बात , सदा कब रहता सावन ।
सफल बने हर काल, बने उत्साही जीवन ।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२१ -०६-२०२०) को शब्द-सृजन-26 'क्षणभंगुर' (चर्चा अंक-३७३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
सुन्दर कुण्डलिया।
ReplyDeleteसुन्दर कुंडलियां
ReplyDeleteसुन्दर ..अब ज्यादा नहीं देखने मिलता यह छन्द . आपने अच्छा लिखा है
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब कुण्डलिया छन्द।
वाह बेहतरीन 👌
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